टेसू

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

देह देह टेसू हुई, मन जैसे मकरंद। 
कृष्णमयी है आत्मा, मिलो यशोदानंद। 
 
भीगी हैं सखियाँ सभी, पिचकारी की धार। 
टेसू के रंग में रँगीं, सभी बिरज की नार। 
 
कान्हा टेसू रंग लिए, ब्रज ग्वालों के साथ। 
गली गली में ढूँढ़ते, राधा लगे न हाथ। 
 
अंग अंग टेसू हुआ, छाया है मधुमास। 
द्वारे पर गोरी खड़ी, पिया मिलन की आस। 
 
है वसंत का आगमन, पहने टेसू माल। 
दिव्य धरा हँसती दिखे, मौसम है ख़ुशहाल। 
 
पकती फ़सलों की महक, टेसू रंग बहार। 
ऋतु वसंत ने है लिया, ज्यों अनंग अवतार। 

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