वृद्ध—समय की धरोहर

15-10-2025

वृद्ध—समय की धरोहर

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(विश्व वृद्ध दिवस पर कविता-सुशील शर्मा)
 
समय की थाप पर झूमते क़दम, 
अब धीमे हो चले हैं, 
किन्तु इन क़दमों की थिरकन में
युगों का संगीत बसा है। 
 
चेहरे की झुर्रियाँ
सिर्फ़ बुढ़ापे की निशानियाँ नहीं, 
ये जीवन के युद्धों की पदक हैं, 
जो अनुभवों के रक्त से अर्जित हुए। 
 
वृद्ध
वे थके नहीं हैं, 
वे थम नहीं गए हैं, 
वे समाज की जड़ों में 
छिपा हुआ
वह जल हैं, 
जो वृक्ष को हरित बनाता है। 
 
आज का समय
कभी-कभी उन्हें
कोनों में धकेल देता है, 
अब इनका क्या काम
यह प्रश्न तलवार-सा चुभता है। 
 
पर कौन समझे
कि वही वृद्ध
कभी पिता बनकर सीढ़ी बने थे, 
माँ बनकर छाया बने थे, 
जिन्होंने बच्चों की हथेलियों में
सपनों के अक्षर लिखे थे। 
 
आज वही हाथ
काँपते हैं, 
पर उनमें अब भी है
दुआओं की अथाह शक्ति। 
आज वही आँखें
धुँधली हैं, 
पर उनमें अब भी है
मार्गदर्शन का दीप। 
 
समाज का भविष्य
युवाओं की ऊर्जा है, 
पर उसकी दिशा
वृद्धों की स्मृति से ही निकलती है। 
युवाओं की गति
आँधी हो सकती है, 
पर वृद्धों की स्थिरता
पर्वत जैसी है। 
 
आज
जब हम आधुनिकता के नाम पर
उन्हें उपेक्षित करते हैं, 
तब वास्तव में हम
अपने ही अतीत को नकारते हैं। 
 
वृद्ध
स्मृतियों की नदी हैं, 
अनुभवों का पुस्तकालय हैं, 
सहनशीलता का सागर हैं। 
उनके बिना
समाज केवल वर्तमान होगा, 
भविष्य और अतीत से विहीन। 
 
इस विश्व वृद्ध दिवस पर
आओ प्रण करें
वृद्धों को केवल स्मृति न मानें, 
बल्कि वर्तमान का सहारा भी समझें। 
उनकी थकान को सम्मान दें, 
उनकी हँसी को अपना उजाला मानें। 
 
वृद्ध होना
कमज़ोर होना नहीं है, 
वृद्ध होना
पूर्ण होना है
समय की यात्रा का 
मुकुट पहनना है। 
 
हम सब साठोत्तर पीढ़ी के लोग
यही कहना चाहते हैं
हमारे भीतर अब भी
सपनों की नमी है, 
शरद चाँदनी-सी उजली आस्था है, 
और अपनों के लिए
अनगिनत आशीष हैं। 

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