प्रदूषण और पर्यावरण चेतना

01-06-2025

प्रदूषण और पर्यावरण चेतना

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

(कुण्डलिया)

 

हरियाली घटती गई, सूख गया सब नीर। 
कंक्रीट जंगल खड़े, साँसें विकल अधीर॥
साँसें विकल अधीर, शहर सब विष के प्याले। 
दूषित धरा समीर, सूखते दरिया नाले। 
क़त्ल हुए हैं वृक्ष, धरा अब ज़हर की प्याली। 
धरती माँ की पीर, कहाँ मन की हरियाली। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
कविता
लघुकथा
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
दोहे
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
साहित्यिक आलेख
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
गीत-नवगीत
कहानी
काव्य नाटक
कविता - हाइकु
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
स्मृति लेख
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में