होली पर कुण्डलिया

01-04-2021

होली पर कुण्डलिया

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

1.
फागुन के रंग में रँगे, धरा प्रकृति आकाश।
होली में सब मस्त हैं, टेसू संग पलाश।
टेसू संग पलाश, गंध महुआ मन भावन।
जीवन रंग विलास, खिला मन सुरभित पावन।
तन मन रँगा सुशील, प्रीत की पायल रुनझुन।
होली रंग बहार, लिए फिरता है फागुन।
2.
मुखड़ा मले अबीर में, राधा जू मुस्काय।
मोहन की दीपित छवि, देखत नहीं अघाय।
देखत नहीं अघाय, धरें भरके पिचकारी।
निरखत छवि जा श्याम, फिरे राधा बेचारी।
किसको रंग लगाय, कहे किससे यह दुखड़ा।
हर गोपी के संग, दिखे केशव का मुखड़ा।
3.
कोरोना ने कर दिया, सब कुछ मटियामेट।
रंग भंग विध्वंस सब, पड़े हैं लंबेलेट।
पड़े हैं लम्बे लेट, लॉक डाउन की बारी।
लेकर लम्बा लट्ठ, खड़े हैं वर्दीधारी।
बाँधे मास्क सुशीलट, ख़ूब आता है रोना।
लेकर रंग गुलाल, खड़ा बाहर कोरोना।

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