शर्बत

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

दोपहर में बहुत तेज़ धूप थी सुधीर शर्बत वाले ठेले पर पहुँचा, ठेले वाले ने पूछा, “बाबूजी क्या लेंगे?” 

सुधीर ने उचटती निगाह ठेले पर डाली उसने देखा कि एक जार में चीनी भरी है, दूसरे जार में बर्फ़ रखी है, एक पारदर्शी टंकी में सिर्फ़ पानी है, पास में कुछ नींबू रखे थे, साथ ही कुछ रंगों की बोतलें थीं। सुधीर ने कहा, “भाई शर्बत पिलाओ।” 

ठेले वाला बोला, “साहब क्या पियेंगे, चीनी और पानी; चीनी, पानी और बर्फ़; चीनी, पानी, बर्फ़ और नींबू; चीनी, पानी, नीबू, बर्फ़ के साथ प्राकृतिक रंग?” 

ज़ाहिर है सुधीर ने आख़िर वाला विकल्प चुना ये सोचते हुए कि ज़िन्दगी में मुख्य उद्देश्यों के साथ वो सभी लक्ष्य जो कम महत्त्व के होते हैं, अगर साथ में मिल जाते हैं तो ज़िन्दगी स्वादिष्ट शर्बत बन जाती है। 

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