वाह रे पर्यावरण दिवस! 

15-06-2025

वाह रे पर्यावरण दिवस! 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(पर्यावरण दिवस पर विशेष आलेख) 

 

हर साल 5 जून आता है और अपने साथ लाता है एक ख़ास दिन–पर्यावरण दिवस! यह वो दिन है जब हम सब अचानक से प्रकृति प्रेमी बन जाते हैं। सोशल मीडिया पर हरे-भरे कोट्स की बाढ़ आ जाती है, नेताजी एक पौधा लगाकर फोटो खिंचवाते हैं, और कुछ उत्साही लोग प्लास्टिक के ख़िलाफ़ भाषण देते हैं। लेकिन, जैसे ही 6 जून की सुबह होती है, हम फिर से वही पुराने ‘पर्यावरण-दुश्मन’ बन जाते हैं, अपनी आदतों के दलदल में धँसकर। 

पर्यावरण की वर्तमान दशा: एक समीक्षा

चलिए, एक नज़र डालते हैं हमारे आज के पर्यावरण पर, जहाँ हम ख़ुद ही ‘पर्यावरण-संकट’ के सूत्रधार हैं। 

हवा में घुला ज़हर:

हम हर साल दिवाली पर कहते हैं कि पटाखे नहीं जलाएँगे, पर जैसे ही नई गाड़ी आती है, उसकी नंबर प्लेट पर “पर्यावरण-अनुकूल” स्टिकर लगवाकर संतुष्ट हो जाते हैं। साँस लेने के लिए ऑक्सीजन नहीं, बल्कि प्रदूषित हवा मिल रही है, जिसकी क़ीमत हम अपनी फेफड़ों की बीमारी से चुका रहे हैं। और हाँ, “हवा शुद्ध करने वाले पौधे” तो बस घर के अंदर की सजावट के लिए हैं, बाहर फ़ैक्ट्रियों का धुआँ तो चलता रहेगा! 

पानी का रोना:

नदियाँ, जो कभी जीवनदायिनी थीं, अब बड़े-बड़े नाले बन गई हैं। उद्योगपतियों के लिए यह “पानी नहीं, अपशिष्ट निकासी का मार्ग” है। घरों में आरओ फ़िल्टर लगाकर हम ख़ुद को बचा लेते हैं, पर उन मछलियों का क्या जो प्लास्टिक और रसायन पीकर मर रही हैं? और समुद्र? वो तो हमारा सबसे बड़ा कचरादान है, जहाँ प्लास्टिक के पहाड़ तैर रहे हैं। “जल ही जीवन है” का नारा तो बस किताबों में अच्छा लगता है, असल में हम जल को ‘जीवाणु का घर’ बना रहे हैं। 

धरती का बुखार:

ग्लोबल वार्मिंग? अरे, यह तो बस विकसित देशों की साज़िश है ताकि हम विकास न करें! हम तो एयर कंडीशनर चलाकर, फ़्रिज में बोतलें ठंडी करके, और हर दूसरे काम के लिए बिजली फूँककर ‘आधुनिक जीवन’ जी रहे हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं? समुद्र का स्तर बढ़ रहा है? कोई बात नहीं, हमारे पास तो ऊँची-ऊँची इमारतें बनाने के लिए और ज़मीन है! और हाँ, पेड़ों की कटाई पर कौन ध्यान देता है, जब हमें नए शॉपिंग मॉल और अपार्टमेंट बनाने हों? 

कचरे का साम्राज्य:

 “रिड्यूस, रीयूज़, रीसायकल” ये तीन शब्द हमारे लिए केवल सोशल मीडिया के हैशटैग हैं। हर चीज़ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक में पैक होकर आती है और हम उसे तुरंत कूड़ेदान में फेंक देते हैं। कूड़े के पहाड़ इतने ऊँचे हो गए हैं कि उनसे पर्यटक स्थल बनाने का विचार आ रहा है! और ई-कचरा? वो तो हमारे पुराने फोन और लैपटॉप का पुण्य-कर्म है जो धरती को प्रदूषित कर रहा है। 

समाधान: क्या कोई आशा है?

तो क्या हम सिर्फ़ व्यंग्य करके बैठ जाएँ? नहीं, समाधान भी हैं, लेकिन उनके लिए थोड़ी मेहनत और बहुत सारी ईमानदारी चाहिए। 

बदलें आदतें, सिर्फ़ बातें नहीं:

हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण की रक्षा कोई सरकारी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि हमारी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है। प्लास्टिक का उपयोग कम करें, बिजली बचाएँ, पानी बर्बाद न करें। यह छोटा सा क़दम ही बड़े बदलाव की नींव रखेगा 

सरकारी नीतियाँ और उनका क्रियान्वयन:

क़ानून तो बहुत हैं, लेकिन उनका पालन कहाँ होता है? प्रदूषण फैलाने वाली फ़ैक्ट्रियों पर सख़्त कार्रवाई हो, नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जाए, और हाँ, उन अधिकारियों को भी जो रिश्वत लेकर पर्यावरण को बेचने में मदद करते हैं। 

शिक्षा और जागरूकता:

बच्चों को बचपन से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। उन्हें सिर्फ़ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से पेड़ लगाना, पानी बचाना और कचरा प्रबंधन सिखाना होगा। हमें यह भी समझना होगा कि पर्यावरण दिवस सिर्फ़ एक दिन का नाटक नहीं, बल्कि हर दिन की ज़िम्मेदारी है। 

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर रुख:

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा-ये सिर्फ़ फ़ैंसी शब्द नहीं हैं, बल्कि भविष्य हैं। सरकार और नागरिकों दोनों को जीवाश्म ईंधन से हटकर इन स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा। 

सामुदायिक प्रयास:

केवल सरकार या कुछ जागरूक लोग ही नहीं, बल्कि पूरा समाज जब एकजुट होकर काम करेगा, तभी बदलाव आएगा। अपने महल्ले में सफ़ाई अभियान चलाएँ, स्थानीय स्तर पर पेड़ लगाएँ, और अपने आसपास के लोगों को जागरूक करें। 

आख़िर में, यह पर्यावरण दिवस हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर करता है: क्या हम सिर्फ़ अपने लिए जी रहे हैं, या आने वाली पीढ़ियों के लिए भी कुछ छोड़ना चाहते हैं? क्या हम सिर्फ़ “सेल्फ़ी विद प्लांट” के लिए पर्यावरण प्रेमी बन रहे हैं, या वास्तव में बदलाव लाना चाहते हैं? 

पर्यावरण दिवस को सिर्फ़ एक रस्म अदायगी न बनाएँ, बल्कि इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाएँ। क्योंकि अगर हमने आज प्रकृति का सम्मान नहीं किया, तो कल प्रकृति हमें अपना अपमान सहने पर मजबूर कर देगी। और तब, हमारे पास सिर्फ़ प्रदूषण, बीमारी और “काश” कहने के लिए कुछ भी नहीं होगा। 

क्या आप तैयार हैं, सिर्फ़ 5 जून को नहीं, बल्कि हर दिन पर्यावरण दिवस मनाने के लिए?

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