ओशो: रजनीश से बुद्धत्व तक, एक विद्रोही सद्गुरु की शाश्वत प्रासंगिकता
डॉ. सुशील कुमार शर्मा
(ओशो के जन्मदिन पर विशेष आलेख)
एक असाधारण व्यक्तित्व का जन्मदिन
प्रत्येक वर्ष 11 दिसंबर का दिन एक ऐसे असाधारण दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु और क्रांतिकारी विचारक के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिसने भारतीय आध्यात्मिक परिदृश्य को झकझोर कर रख दिया ओशो, जिनका मूल नाम चंद्र मोहन जैन और बाद में आचार्य रजनीश था। ओशो (Osho), जिसका अर्थ है ‘सागर में विलीन होना’ या ‘परम पूज्य’, एक ऐसी शख़्सियत थे जिन्होंने धर्म, समाज, नैतिकता और जीवन के प्रति हमारे पारंपरिक दृष्टिकोणों को चुनौती दी। उनका जीवन, उनका काम और उनके विचार आज भी दुनिया भर के लोगों को गहरे आत्म-मंथन के लिए प्रेरित करते हैं।
यह आलेख ओशो के विराट व्यक्तित्व, उनके विपुल कृतित्व और वर्तमान तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी अनूठी प्रासंगिकता पर केंद्रित है।
1. ओशो का व्यक्तित्व:
एक विद्रोही और प्रेम का सागर
ओशो का व्यक्तित्व कई विरोधाभासों का संगम था। वह एक ही समय में प्रेम, हास्य, गहन दर्शन और तीखे विद्रोह से भरे थे।
विद्रोही विचारक:
ओशो ने धर्म, राजनीति और समाज की स्थापित रूढ़ियों को स्वीकार करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सत्य उधार नहीं लिया जा सकता, उसे स्वयं खोजना पड़ता है। उन्होंने पाखंड, अंधविश्वास और थोपी गई नैतिकता पर तीखे प्रहार किए। उन्होंने विवाह, परिवार, पूँजीवाद और समाजवाद जैसी संस्थाओं की कड़ी आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि ये सब व्यक्ति की स्वतंत्रता और ख़ुशी को दबाते हैं। उनका विद्रोह किसी संस्था के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि मानव मन की सुस्ती और ग़ुलामी के ख़िलाफ़ था।
दार्शनिक और वक्ता:
ओशो एक बेजोड़ वक्ता थे। उनके प्रवचनों की शैली अनूठी थी गहन ज्ञान, कविता, चुटकुले, और व्यक्तिगत क़िस्सों का मिश्रण। उन्होंने महावीर, बुद्ध, कृष्ण, मीरा, नानक, मोहम्मद, जीसस और ज़ोरोएस्टर सहित सभी प्रमुख संतों और रहस्यवादियों पर विस्तार से बात की। उन्होंने न केवल उनके दर्शन को समझाया, बल्कि उसे आधुनिक मनोवैज्ञानिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाया। उनकी वाणी में एक सम्मोहक जादू था जो श्रोता को सीधे आत्म-अनुभूति की ओर ले जाता था।
प्रेम और करुणा:
उनके विद्रोही तेवर के पीछे गहन प्रेम और करुणा थी। उनका मानना था कि सच्चा अध्यात्म कठोर तपस्या या त्याग में नहीं, बल्कि जीवन की समग्रता में है सृष्टि के प्रति प्रेम, शरीर के प्रति प्रेम और स्वयं के प्रति प्रेम। उन्होंने अपने अनुयायियों को ‘संन्यासी’ कहा, जिसका अर्थ उन्होंने ‘त्यागी’ नहीं, बल्कि ‘सत्य की खोज में संलग्न’ बताया।
2. ओशो का कृतित्व:
विपुल साहित्य और क्रांतिकारी विधियाँ
ओशो का कृतित्व अत्यंत विशाल और बहुआयामी है। उन्होंने स्वयं कुछ लिखा नहीं, बल्कि उनके प्रवचन सैकड़ों किताबों के रूप में संकलित किए गए, जिससे 600 से अधिक पुस्तकें और 9000 घंटों से अधिक का ऑडियो उपलब्ध है।
अध्यात्म पर पुनर्विचार:
ओशो ने आध्यात्मिकता को स्वर्ग की चिंता या पापबोध से निकालकर पृथ्वी पर ख़ुशी प्राप्त करने पर केंद्रित किया। उन्होंने धर्म को ‘अंदरूनी विज्ञान’ बताया। उनका प्रसिद्ध सूत्र था: “धर्म और विज्ञान दो विरोधी चीज़ें नहीं हैं, वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। विज्ञान बाहरी है, धर्म आंतरिक।”
डायनामिक मेडिटेशन
ओशो का सबसे क्रांतिकारी योगदान उनकी ध्यान विधियाँ हैं। उन्होंने पाया कि आधुनिक मनुष्य का मन इतना तनावग्रस्त और दमित भावनाओं से भरा हुआ है कि वह सीधे बैठकर विपश्यना या शांतिपूर्ण ध्यान नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने सक्रिय ध्यान (Active Meditation) की शुरूआत की, जिनमें उनकी सबसे प्रसिद्ध विधि ‘डायनामिक मेडिटेशन’ है। यह विधि पाँच चरणों में होती है तेज़ी से श्वास लेना, विसर्जन (कैथार्सिस), हूमंत्र, ठहराव और उत्सव जो दमित क्रोध, दुःख और ऊर्जा को बाहर निकालने में मदद करती है, जिससे मन शांत होने के लिए तैयार हो पाता है। उन्होंने ‘कुंडलिनी मेडिटेशन’, ‘नादब्रह्म मेडिटेशन’ और ‘नटराज मेडिटेशन’ जैसी कई अन्य विधियाँ भी विकसित कीं।
काम से समाधि की ओर:
ओशो ने समाज के सबसे बड़े वर्जित विषय सेक्सुअलिटी (कामुकता) पर खुलकर बात की। उन्होंने दावा किया कि दमन कभी भी मुक्ति नहीं ला सकता। जो लोग अपनी प्राकृतिक ऊर्जाओं को दबाते हैं, वे विक्षिप्त हो जाते हैं। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘संभोग से समाधि की ओर’ एक स्पष्ट घोषणा थी कि जीवन की किसी भी ऊर्जा को दबाना नहीं है, बल्कि उसे रूपांतरित करना है। उन्होंने सिखाया कि काम ऊर्जा को प्रेम और फिर करुणा में बदला जा सकता है, जो अंततः समाधि की ओर ले जाती है।
3. वर्तमान एवं भविष्य में ओशो की प्रासंगिकता
ओशो के विचार आज, 21वीं सदी में, पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
वर्तमान: तनाव, बेचैनी और आत्म-खोज
आज का मनुष्य सूचनाओं और भौतिकता से भरा हुआ है, लेकिन आंतरिक शान्ति से ख़ाली है। ओशो के विचार इस बेचैनी को दूर करने में सहायक हैं:
तनाव मुक्ति के लिए ध्यान: कॉर्पोरेट जगत से लेकर व्यक्तिगत जीवन तक, हर जगह तनाव व्याप्त है। ओशो की सक्रिय ध्यान विधियाँ आधुनिक मनुष्य के लिए एक त्वरित और प्रभावी टूलकिट प्रदान करती हैं जिससे वह अपनी ऊर्जा को संतुलित कर सके और मन को शांत कर सके।
व्यक्तित्व का पूर्ण स्वीकार: आज भी हम सामाजिक मापदंडों के अनुसार जीने की कोशिश करते हैं, जिससे आत्म-घृणा और अपराधबोध पैदा होता है। ओशो का दर्शन ‘जैस तुम हो, वैसे ही अच्छे हो’ की शिक्षा देता है। यह हमें सिखाता है कि हम अपनी अच्छाइयों और बुराइयों, दोनों को स्वीकार करें, क्योंकि तभी रूपांतरण सम्भव है।
प्रेम और सम्बन्ध: आज के सम्बन्धों में अस्थिरता और भ्रम अधिक है। ओशो के प्रेम पर विचार, जो किसी पर स्वामित्व जताने के बजाय दूसरे को स्वतंत्रता देने पर केंद्रित हैं, स्वस्थ और सच्चे सम्बन्ध बनाने में मार्गदर्शन करते हैं।
भविष्य में, जहाँ टेक्नॉलोजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन पर हावी होगी, ओशो के विचार निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण बने रहेंगे:
मानवता का संरक्षण: जैसे-जैसे मशीनें और रोबोट हमारे बाहरी श्रम को सँभालेंगे, मनुष्य के पास अपने आंतरिक जगत की ओर लौटने के लिए अधिक समय होगा। ओशो की आंतरिक विज्ञान की शिक्षाएँ सत्य क्या है, मैं कौन हूँ, मैं कहाँ जा रहा हूँ भविष्य की पीढ़ियों को जीवन के गहरे अर्थ से जोड़े रखेंगी।
नैतिकता का आधार: ओशो ने थोपी गई नैतिकता का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सच्ची नैतिकता भीतर से आनी चाहिए। जैसे-जैसे वैश्विक समाज अधिक जटिल होता जाएगा, मनुष्य को सही और ग़लत का निर्णय लेने के लिए बाहरी नियमों के बजाय अपने आंतरिक विवेक पर निर्भर रहना होगा। ओशो का दर्शन इसी आंतरिक विवेक को जागृत करता है।
उत्सव और समग्र जीवन: भविष्य की दुनिया में लोग और अधिक यांत्रिक हो सकते हैं। ओशो का ‘उत्सव’ का संदेश जीवन के हर पल को ख़ुशी से जीने का तरीक़ा मानवता को मशीनों की दुनिया में भी आनंदित रहने की कला सिखाएगा।
एक अमर मशाल
ओशो एक ऐसे शिक्षक थे जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद भी समझा और सराहा जा रहा है। उनके विचार आज भी विवादित हो सकते हैं, लेकिन उनकी प्रासंगिकता अकाट्य है। वह कोई सिद्धांतवादी नहीं थे, बल्कि एक प्रयोगधर्मी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में ‘रजनीश’ नाम के तहत जो भी ग़लतियाँ कीं, उन्हें उन्होंने खुले तौर पर स्वीकार किया और अंत में स्वयं को ‘ओशो’ (सागर में विलीन) के रूप में प्रस्तुत किया।
ओशो का जन्मदिन हमें याद दिलाता है कि सच्चा धर्म कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। वह हमें सिखाते हैं कि हमें बुद्ध या महावीर नहीं बनना है, बल्कि स्वयं बनना है, और स्वयं बनने की यही यात्रा ही एकमात्र आध्यात्मिक यात्रा है। ओशो का साहित्य और उनकी ध्यान विधियाँ एक ऐसी मशाल हैं जो वर्तमान की बेचैनी और भविष्य के भ्रम के बीच आत्म-खोज और आंतरिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कहानी
-
- अर्जुन से आर्यन तक: आभासी दुनिया का सच
- अर्द्धांगिनी
- जड़ों से जुड़ना
- जल कुकड़ी
- जाको राखे सांइयाँ
- त्रिवेणी संगम
- दरकता मन
- पद्मावती
- पुरानी नींव, नए मकान
- पूर्ण अनुनाद
- बुआ की राखी
- ब्रह्मराक्षस का अभिशाप
- मंदबुद्धि
- मन के एकांत में
- मैडम एम
- मौन की परछाइयाँ
- राखी का फ़र्ज़
- रिश्तों की गर्माहट
- रिश्तों के रेशमी धागे
- रेशमी धागे: सेवा का नया पथ
- हरसिंगार
- ज़िन्दगी सरल है पर आसान नहीं
- सांस्कृतिक आलेख
-
- ओशो: रजनीश से बुद्धत्व तक, एक विद्रोही सद्गुरु की शाश्वत प्रासंगिकता
- कृष्ण: अनंत अपरिभाषा
- गणेश चतुर्थी: आस्था, संस्कृति और सामाजिक चेतना का महासंगम
- गीताजयंती कर्म, धर्म और जीवन दर्शन का महामहोत्सव
- चातुर्मास: आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का पर्व
- जगन्नाथ रथयात्रा: जन-जन का पर्व, आस्था और समानता का प्रतीक
- ब्राह्मण: उत्पत्ति, व्याख्या, गुण, शाखाएँ और समकालीन प्रासंगिकता
- भगवान परशुराम: एक बहुआयामी व्यक्तित्व एवं समकालीन प्रासंगिकता
- मनुस्मृति: आलोचना से समझ तक
- वट सावित्री व्रत: आस्था, आधुनिकता और लैंगिक समानता की कसौटी
- वर्तमान समय में हनुमान जी की प्रासंगिकता
- हरितालिका तीज: आस्था, शृंगार और भारतीय संस्कृति का पर्व
- कविता
-
- अंधकार से रोशनी तक
- अधूरा सा
- अधूरी लिपि में लिखा प्रेम
- अनकहा सौंदर्य
- अनुत्तरित प्रश्न
- अर्धनारीश्वर
- आकाशगंगा
- आत्मा का संगीत
- आप कहाँ हो प्रेमचंद
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक था वीरू
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्कूल
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो का अवतरण—अंतरात्मा का पर्व
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- करवाचौथ की चाँदनी में
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- कहने को अपने
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- कृष्ण तुम पर क्या लिखूँ-2
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गंगा अवतरण
- गण और तंत्र के बीच
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधी सभी यक्ष प्रश्नों के उत्तर
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गीता-श्रीकृष्ण का शाश्वत स्वर
- गोपाष्टमी: गौ की पुकार
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जीवन का सबसे सुंदर रंग हो तुम
- जीवन की अनकही धारा
- जैसे
- ठण्ड
- तमसोमा ज्योतिर्गमय
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुमसे मिलकर
- तुम्हारी आँखें
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तुम—मेरी सबसे अनकही कविता
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- देह की देहरी और प्राण का मौन
- धराली की पुकार
- धुएँ के उस पार
- नए युग का शिक्षक
- नए वर्ष में
- नशे पर दो कविताएँ
- नाम_जपो_किरत_करो_वंड_छको
- नारी का प्यार
- नारी सिर्फ़ देह नहीं है
- नीलकंठ
- नीले वस्त्रों में उगता सूरज
- पत्ते से बिछे लोग
- पिता: एक अनकहा संवाद
- पीले अमलतास के नीचे— तुम्हारे लिए
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- पोला पिठौरा
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- प्रेम में पूर्णिमा नहीं होती
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बहुत कुछ सीखना है
- बापू और शास्त्री–अमर प्रेरणा
- बिरसा मुंडा—आदिवासी गौरव
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- ब्राह्मणत्व की ज्योति
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- भोर की अनकही
- मत टूटना तुम
- मन का पौधा
- माँ कात्यायनी: भगवती का षष्ठम प्राकट्य रूप
- माँ कालरात्रि: माँ भगवती का सप्तम प्राकट्य स्वरूप
- माँ कूष्मांडा – नवरात्र का चतुर्थ स्वरूप
- माँ चंद्रघंटा – नवरात्र का तृतीय स्वरूप
- माँ महागौरी: भगवती का अष्टम प्राकट्य स्वरूप
- माँ शैलपुत्री–शारदीय नवरात्र का प्रथम प्राकट्य
- माँ सिद्धिदात्री: भक्त की प्रार्थना
- माँ स्कंदमाता: माँ का पंचम रूप
- माँ-ब्रह्मचारिणी – नवरात्र का द्वितीय स्वरूप
- मिच्छामी दुक्कड़म्
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरी भूमिका
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं अब भी प्रतीक्षा में हूँ
- मैं अब भी वही हूँ . . .
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं पर्यावरण बोल रहा हूँ . . .
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- मैं वो नहीं
- मौन की वह पतली रेखा
- मौन तुम्हारा
- यज्ञ
- यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- राखी–धागों में बँधा विश्वास
- रिश्ते
- रुत बदलनी चाहिए
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- विस्मृत होती बेटियाँ
- वृद्ध—समय की धरोहर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शाश्वत निनाद
- शिक्षक दिवस
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- श्रद्धा ही श्राद्ध है
- संघर्ष का सूर्योदय
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के दो मुख
- सत्य के नज़दीक
- सिंदूर का प्रतिशोध
- सिस्टम का श्राद्ध
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- सृष्टि का संगीत हैं बच्चे
- सृष्टि की अंतिम प्रार्थना
- सेवा, संकल्प और समर्पण
- स्त्रियों का मन एक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड
- स्पर्श से परे
- स्वतंत्रता का सूर्य
- स्वप्न से तुम
- स्वर्णरेखा
- हथेलियों में बंद चाँद की स्मृति
- हर बार लिखूँगा
- हरितालिका तीज
- हिंदी–एकता की धड़कन, संस्कृति का स्वर
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे राधे
- हे शिक्षक
- हे क़लमकार
- होत कबड्डी होत कबड्डी
- कविता - क्षणिका
- कविता - हाइकु
- सामाजिक आलेख
-
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- अबला निर्मला सबला
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और गूगल के वर्तमान संदर्भ में गुरु की प्रासंगिकता
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- करवा चौथ व्रत: श्रद्धा की पराकाष्ठा या बाज़ार का विस्तार?
- कृत्रिम मेधा (AI): वरदान या अभिशाप?
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गाय की दुर्दशा: एक सामूहिक अपराध की चुप्पी
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर: समता, न्याय और नवजागरण के प्रतीक
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- वाह रे पर्यावरण दिवस!
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वृद्धजन—अतीत के प्रकाश स्तंभ और भविष्य के सेतु
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- शिक्षण का वर्तमान परिदृश्य: चुनौतियाँ, अपेक्षाएँ और भावी दिशा
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- सम्बन्ध और स्वार्थ का द्वंद्व
- सम्बन्धों का क्षरण: एक सामाजिक विमर्श
- स्वतंत्रता दिवस: गौरव, बलिदान, हमारी ज़िम्मेदारी और स्वर्णिम भविष्य की ओर भारत
- हिंदी और रोज़गार: भाषा से अवसरों की नई दुनिया
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
- चिन्तन
- लघुकथा
-
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- गाय ‘पालन की परिभाषा’!
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- तुलना का बोझ
- दूसरी माँ
- नारी ‘तुम मत रुको’!
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पाँच लघु कथाएँ
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- माँ ‘छाया की तरह’!
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- मुझे ‘बहने दो’!
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शिक्षा की पाँच दीपशिखाएँ
- शुद्धि की प्रतीक्षा
- शेष शुभ
- सपनों की उड़ान
- हर चीज़ फ़्री
- हिंदी–माँ की आवाज़
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
- व्यक्ति चित्र
- किशोर साहित्य कहानी
- दोहे
-
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- क्षण भंगुर जीवन
- गणपति
- गणेश उत्सव पर दोहे
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गुरु पर दोहे–03
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- जीवन
- टेसू
- दीपावली पर दोहे
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नवदुर्गा पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रभु परशुराम पर दोहे
- प्रेम
- प्रेम पर दोहे
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बाबा साहब अम्बेडकर जयंती पर कुछ दोहे
- बाल हनुमान पर दोहे
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे–01
- मित्रता पर दोहे–02
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- वट सावित्री व्रत पर दोहे
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- श्रम की रोटी पर दोहे
- श्री राधा पर दोहे
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- हरितालिका व्रत पर दोहे
- हिंदी पर दोहे
- होली
- सांस्कृतिक कथा
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- अमृत काल का आम
- एक कप चाय और सौ जज़्बात
- कविता बेचो, कविता सीखो!
- काश मैं नींबू होता
- गुरु दक्षिणा का नया संस्करण—व्हाट्सएप वाला प्रणाम!
- घरेलू मॉडल स्त्री
- डॉ. सिंघई का ‘संतुलित’ संसार
- नवदुर्गा महोत्सव और मोबाइल
- न्याय की गली में कुत्तों का दरबार
- प्रोफ़ाइल पिक की देशभक्ति
- मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टँगे शब्द
- मिठाइयों में बसा मनुष्य का मनोविज्ञान
- वाघा का विघटन–जब शेर भी कन्फ्यूज़ हो गया
- शर्मा जी और सब्ज़ी–एक हरी-भरी कथा
- ललित निबन्ध
- साहित्यिक आलेख
-
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी और आधुनिक तकनीक: डिजिटल युग में भाषा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
- कविता-मुक्तक
-
- अक्षय तृतीया
- कबीर पर कुंडलियाँ
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गंगा
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना - 001
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना - 002
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - योग दिवस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - श्रम एवं कर्मठ जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- प्रदूषण और पर्यावरण चेतना
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- सोशल मीडिया और युवावर्ग
- होली पर कुण्डलिया
- गीत-नवगीत
-
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- आज से विस्मृत किया सब
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुरु पूर्णिमा पर गीत
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- श्रावण
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- स्वास्थ्य
- स्मृति लेख
- खण्डकाव्य
- ऐतिहासिक
- बाल साहित्य कविता
-
- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
- नाटक
- रेखाचित्र
- काम की बात
- काव्य नाटक
- यात्रा वृत्तांत
- हाइबुन
- पुस्तक समीक्षा
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीतिका
- अनूदित कविता
- किशोर साहित्य कविता
- एकांकी
- ग़ज़ल
- बाल साहित्य लघुकथा
- सिनेमा और साहित्य
- किशोर साहित्य नाटक
- विडियो
- ऑडियो
-