श्रद्धा ही श्राद्ध है

15-09-2025

श्रद्धा ही श्राद्ध है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


 (श्राद्ध पर कविता) 
 

काल की धूल उड़ती रहती है
पर उसकी तहों में दबे रहते हैं चेहरे, 
आवाज़ें, मुस्कानें, सपनों की रूपरेखाएँ। 
हम जब आँखें बंद करते हैं
तो वही आकृतियाँ लौट आती हैं
 
मेरे दादा की झुकी पीठ, 
मेरे पिता की थकी आँखें, 
मेरे बच्चों की चमकती उम्मीदें। 
 
हर पीढ़ी एक पुल है
जिस पर चलते हैं वे सपने
जो कभी हवा में उड़ते थे, 
जो कभी खेतों की मेड़ों पर बोए गए थे, 
जो कभी दीपक की लौ में जलते थे। 
मेरे पिताजी ने जो भरोसा मुझ पर रखा
वही विश्वास मैं अपने बच्चों की
आँखों में खोजता हूँ। 
उनके हाथों की मेहनत, 
उनके माथे का पसीना, 
उनके मन की प्रार्थना
सब कुछ धीरे-धीरे
मेरे भीतर जगह बनाता जाता है। 
 
श्राद्ध कोई मात्र एक कर्मकांड नहीं, 
यह एक पुल है जो समय की
दरारों को भरता है। 
यह एक अनकही बातचीत है
जहाँ हम कहते हैं
“हम तुम्हें भूले नहीं, 
तुम्हारी मेहनत, तुम्हारा विश्वास, 
तुम्हारी आशाएँ
हमारे भीतर साँस लेती हैं।” 
 
दो अंजुलि जल
जैसे समय की थकी हथेलियों में
हम श्रद्धा का स्पर्श रख देते हैं। 
तीन कौर अन्न
जैसे भूख नहीं, कृतज्ञता का निवाला हो
जो आत्मा तक पहुँचता है। 
वो आशीष जो हमें रोकता नहीं
बल्कि आगे बढ़ने की शक्ति देता है। 
 
पूर्वजों का रक्त
नदी की तरह बहता है
जिसमें इतिहास की गहराई है, 
सपनों की लहरें हैं, 
संघर्षों की मिट्टी है। 
हर पीढ़ी में वही रक्त
नई आकांक्षा बनकर धड़कता है। 
जब हम श्राद्ध की थाली सजाते हैं
तो वह केवल भोजन नहीं होता
वह सम्मान होता है
उन हाथों का
जिन्होंने हमें चलना सिखाया। 
 
श्रद्धा से श्राद्ध है
क्योंकि श्रद्धा के बिना स्मरण
केवल औपचारिकता रह जाता है। 
श्रद्धा वह पुल है
जो मनुष्य को समय से, 
मृत्यु से, विस्मरण से बचाता है। 
श्रद्धा में ही जीवन का सतत प्रवाह है
जो पीढ़ी दर पीढ़ी
रिश्तों को शब्द देता है, 
आशीर्वाद को ऊर्जा देता है, 
आत्मा को अपनापन देता है। 
 
आज मैं अपने बच्चों की आँखों में
अपने पिता का चेहरा देखता हूँ। 
उनकी हँसी में दादा की आवाज़ सुनता हूँ। 
उनकी जिज्ञासा में
पूर्वजों की जिजीविषा 
की चमक पहचानता हूँ। 
मैं जानता हूँ
यह श्राद्ध केवल अतीत के लिए नहीं, 
यह भविष्य के लिए भी संकल्प है। 

हम जो अन्न चढ़ाते हैं, 
वो समय की स्मृति है। 
हम जो जल अर्पित करते हैं, 
वो आत्मा का स्पर्श है। 
हम जो दीप जलाते हैं, 
वो निरंतरता का प्रकाश है। 
 
श्रद्धा से श्राद्ध है
और श्राद्ध से जीवन का 
नया अर्थ जन्म लेता है। 
हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं
तो हम स्वयं को पहचानते हैं। 
हम अपने भीतर छिपे अतीत को
 गले लगाते हैं
तो भविष्य का मार्ग रोशन होता है। 
 
आओ, हम इस स्मरण की 
शीतल धारा में डूबकर
उन सबको प्रणाम करें
जिन्होंने बिना कहे हमें जीवन दिया, 
जिन्होंने सपनों की लौ जलाकर
हमारे रास्ते प्रकाशित किए। 
यही श्राद्ध है
यही श्रद्धा है
यही जीवन का सतत उत्सव है।

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