तुम तुम रहे

01-06-2022

तुम तुम रहे

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

तुम तुम रहे
मैं मैं रही।
 
आसमानी
बात कहते।
तुम ज़मीं पर
क्यों न रहते।
चाँद तारे
साथ तेरे।
है ज़मीं अब
साथ मेरे।
 
मैंने सुना
तूने कही।
 
चुप रहा मैं
बोलते तुम।
अपन पट्टी
खोलते तुम।
बदज़ुबानी
ख़ूब करते।
आसमानी
डींग भरते।
 
सत्य कहते
मुँह में दही।
 
नया सूरज
नया घर है।
नई आशा
मुख़्तसर है।
जो न सुधरे
आज भी तुम।
तो रहोगे
वक़्त में गुम।
 
लौट आओ
प्यारे सही।

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