हे शिक्षक

15-09-2025

हे शिक्षक

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(शिक्षक की पीड़ा को उकेरती कविता-सुशील शर्मा) 
 
वह खड़ा है
ब्लैकबोर्ड और समाज
दोनों के बीच, 
एक अदृश्य पुल की तरह
जिस पर हर कोई गुज़रता है
पर कोई नहीं देखता उसकी दरारें। 
 
सरकार उसे जिन्न समझती है
कभी जनगणना का भार, 
कभी चुनाव ड्यूटी का पहाड़, 
कभी योजनाओं का हिसाब, 
कभी फ़ाइलों का अनंत जंगल। 
पाठशाला
उसकी पहली पहचान है, 
पर गैर-शिक्षकीय आदेशों में
उसकी पहचान घुल जाती है। 
 
शिक्षक दिवस आता है
एक दिन, 
जब फूलों की वर्षा होती है, 
सम्मान पत्र दिए जाते हैं, 
तालियाँ बजती हैं, 
लेकिन बाक़ी तीन सौ चौंसठ दिन
वह सिर्फ़ सरकारी कर्मचारी कहलाता है। 
समाज और तंत्र
उसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं
जैसे उसके श्रम पर
भरोसा करना भूल चुके हों। 
 
वह जानता है
उसकी पहली बीस साल की सेवा
काग़ज़ों पर मिटा दी गई है, 
उसकी पेंशन
आधी अधूरी है, 
वह अपने भविष्य को लेकर
सुरक्षित नहीं है, 
फिर भी
आज की पीढ़ी के भविष्य को
गढ़ने में व्यस्त है। 
 
और सच है
कुछ शिक्षक हैं भी ऐसे, 
जो समय पर विद्यालय नहीं पहुँचते, 
जो बच्चों की आँखों में
भविष्य नहीं, धुँधलका भरते हैं, 
जो किताबों से ज़्यादा
शराब की बोतलों को महत्त्व देते हैं। 
वे गिने-चुने हैं, 
पर उन्हीं की परछाईं
पूरे शिक्षक समाज को कलंकित कर देती है। 
उनकी वजह से
ईमानदार शिक्षकों की निष्ठा पर भी
उँगलियाँ उठती हैं। 
 
आज भी
बहुसंख्य शिक्षक
आज भी टूटी कुर्सियों और धूलभरे कमरों में
पसीना बहा रहे हैं, 
अपने घर की आर्थिक कठिनाइयों को भूलकर
बच्चों की आँखों में सपनों की रोशनी भर रहे हैं। 
 
वह खड़ा है
धूप में, बारिश में, 
टूटी कुर्सियों और धूलभरे कमरों में, 
सिर्फ़ इसलिए
कि बच्चे सपनों को पहचानना सीखें। 
 
कितनी अजीब विडम्बना है
जिस समाज को वह साक्षर बनाता है
वही समाज
उसे तिरछी निगाहों से देखता है। 
जिस देश को वह भविष्य देता है
उसी का तंत्र
उसकी वृद्धावस्था का सहारा छीन लेता है। 
 
फिर भी
वह टूटता नहीं, 
वह शिकायतों का पुलिंदा नहीं बनता, 
वह सिर्फ़ चॉक उठाता है, 
और बच्चों की आँखों में
भविष्य की रेखाएँ खींच देता है। 
 
उसके हाथों में
अक्षर हैं, अंक हैं, विचार हैं। 
उसके हृदय में
निष्ठा है, धैर्य है, विश्वास है। 
वह जानता है
उसका जीवन शायद
सरकारी काग़ज़ों में अधूरा रह जाएगा, 
पर उसकी मेहनत
हर उस बच्चे के जीवन में
पूर्णता पाएगी
जो उसे “सरजी” कहकर पुकारता है। 
 
यही उसका उत्सव है, 
यही उसका पुरस्कार है। 

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