राखी–धागों में बँधा विश्वास

01-09-2025

राखी–धागों में बँधा विश्वास

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

राखी के दिन घर का आँगन 
जैसे आशीर्वाद से भर जाता है, 
दीवारों पर टँगी तस्वीरें भी मुस्कुराने लगती हैं, 
क्योंकि वे जानती हैं 
आज फिर उस बंधन का पर्व है
जो शब्दों से नहीं, 
एक नाज़ुक धागे से परिभाषित होता है। 
 
सुबह-सुबह बहन के क़दमों की आहट
मानो घर में कोई मंदिर खुल गया हो, 
उसकी थाली में रखी हल्दी, 
चावल, मिठाई और दीपक
सिर्फ़ पूजा का सामान नहीं, 
ये उसकी स्मृतियों का संग्रह है 
बचपन के झगड़े, साझा खिलौने, 
बारिश में भीगते हुए लौटना, 
और पिता की डाँट से बचाने वाला भाई। 
 
भारतीय संस्कृति में त्योहार
सिर्फ़ कैलेंडर की तारीख़ें नहीं होते, 
ये रिश्तों की नाड़ी में बहता जीवन हैं। 
दीवाली दीपों की चमक है, 
होली रंगों का उत्साह है, 
और राखी . . . 
राखी वह मौन प्रतिज्ञा है
जो बहन की आँखों से बहकर
भाई के मन में उतरती है। 
 
यह त्योहार हमें याद दिलाता है
कि परिवार केवल 
ख़ून का रिश्ता नहीं, 
बल्कि विश्वास, ज़िम्मेदारी 
और साथ निभाने की कसौटी है। 
भाई का माथा झुककर 
तिलक स्वीकार करता है, 
और उस क्षण
वह सिर्फ़ एक रिश्तेदार नहीं, 
बल्कि अपनी बहन के जीवन का
 प्रहरी बन जाता है। 
 
राखी के धागों में 
स्नेह बुनने वाली उँगलियाँ
जानती हैं कि यह डोर 
कभी कमज़ोर नहीं होती, 
समय चाहे कितनी भी दूरियाँ खींच दे, 
यह डोर दोनों के दिलों में
अटूट गाँठ बनकर रहती है। 
 
गाँव की मिट्टी से लेकर
शहर की ऊँची इमारतों तक, 
हर घर में राखी का दृश्य 
अलग हो सकता है, 
पर भाव एक ही है 
अपनों की सुरक्षा, अपनापन 
और स्मृतियों का उजाला। 
 
कभी बहन चुपके से मिठाई का
 टुकड़ा बचाकर भाई के लिए रखती है, 
तो कभी भाई अपने हिस्से की
 आख़िरी टॉफ़ी बहन को दे देता है। 
ये छोटी-छोटी बातें ही तो हैं
जो राखी के दिन अनकहे 
शब्दों में फिर जीवित हो उठती हैं। 
 
राखी का धागा हमें यह भी सिखाता है
कि संबंधों को निभाने के लिए
शक्तिशाली वचनों की नहीं, 
बस एक सच्चे भाव की ज़रूरत होती है। 
यह त्योहार हमें हमारी 
जड़ों की ओर खींच लाता है, 
जहाँ परिवार, परंपरा और प्रेम
तीनों एक साथ साँस लेते हैं। 
 
आज जब दुनिया तेज़ी से बदल रही है, 
त्योहारों का स्वरूप भी बदल रहा है, 
पर राखी . . . 
वह आज भी उतनी ही निर्मल है
 जितनी सदियों पहले थी, 
क्योंकि उसका आधार है 
एक निःस्वार्थ प्रेम, 
जो न समय देखता है, न दूरी, 
बस देखता है तो एक मुस्कान, 
जब बहन राखी बाँधते हुए कहती है 
सदा ख़ुश रहो, मेरे भाई। 

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