गणेश चतुर्थी: आस्था, संस्कृति और सामाजिक चेतना का महासंगम
डॉ. सुशील कुमार शर्मा
(गणेश उत्सव पर आलेख-सुशील शर्मा)
गणेश चतुर्थी का पर्व मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। यह दस दिवसीय उत्सव भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो बुद्धि, समृद्धि और विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं।
प्रादुर्भाव और पौराणिक महत्त्व
गणेश चतुर्थी का प्रादुर्भाव भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी एक पौराणिक कथा में निहित है। माना जाता है कि देवी पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक बालक को जन्म दिया और उसे अपनी कुटिया की रक्षा के लिए नियुक्त किया। जब भगवान शिव वापस लौटे, तो बालक ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया। क्रोधित शिव ने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह जानकर पार्वती अत्यंत दुःखी हुईं। शिव ने उन्हें सांत्वना देने के लिए एक हाथी का सिर बालक के धड़ से जोड़कर उसे पुनर्जीवित किया। तभी से, गणेश प्रथम पूज्य देव माने गए, जिनकी पूजा किसी भी शुभ कार्य से पहले की जाती है।
गणेश जी के अंगों का प्रतीकात्मक महत्त्व
भगवान गणेश का स्वरूप निराला और अद्भुत है। उनके हर अंग का एक गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ है, जो जीवन जीने के मूल्यवान सबक़ सिखाता है। उनके हर अंग में एक गुण छिपा है, जिसे अपनाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
बड़ा सिर: गणेश जी का बड़ा सिर ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें हमेशा बड़ा सोचना चाहिए, अपने ज्ञान का विस्तार करना चाहिए और हर बात को गहराई से समझना चाहिए।
छोटे कान: उनके छोटे कान दर्शाते हैं कि हमें ध्यान से सुनना चाहिए। यह सुनने की कला का प्रतीक है, जहाँ हम अपने आसपास की हर बात को सुनते तो हैं, पर सिर्फ़ काम की बातों को ही ग्रहण करते हैं।
छोटी आँखें: छोटी और पैनी आँखें एकाग्रता और सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक हैं। यह हमें सिखाती हैं कि हमें हर काम को पूरी एकाग्रता और फ़ोकस के साथ करना चाहिए।
लंबी सूँड: गणेश जी की लंबी सूँड कार्यकुशलता और अनुकूलनशीलता (adaptability) को दर्शाती है। यह हमें बताता है कि हमें जीवन में हर परिस्थिति के अनुसार ढलने के लिए तैयार रहना चाहिए और हर काम को कुशलता से पूरा करना चाहिए।
एक दाँत: उनका एक टूटा हुआ दाँत त्याग का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार, उन्होंने महाभारत लिखने के लिए अपना एक दाँत तोड़ दिया था। यह हमें सिखाता है कि एक बड़े और नेक उद्देश्य के लिए हमें अपने अहंकार और प्रिय वस्तुओं का त्याग करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
बड़ा पेट: गणेश जी का बड़ा पेट सब कुछ समाहित करने का गुण लिए हुए है। यह हमें बताता है कि हमें जीवन के सभी सुख-दुख, अच्छी-बुरी बातों और अनुभवों को शांत भाव से अपने अंदर समा लेना चाहिए। यह धैर्य और सहनशीलता का प्रतीक है।
चार हाथ: गणेश जी के चार हाथ दिशाओं और ईश्वरीय शक्ति के प्रतीक हैं। हर हाथ में एक अलग वस्तु है, जो अलग-अलग अर्थ रखती है।
छोटा मूषक: उनका वाहन एक छोटा मूषक (चूहा) है, जो अहंकार और इच्छाओं का प्रतीक है। एक विशाल शरीर वाले गणेश का एक छोटे मूषक पर सवार होना यह दर्शाता है कि उन्होंने अपनी सभी इच्छाओं और अहंकार पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया है।
अनुष्ठान और पूजन विधि
गणेश चतुर्थी का उत्सव मुख्य रूप से गणेश प्रतिमा की स्थापना (स्थापना) और विसर्जन (जल में विसर्जन) के दो मुख्य अनुष्ठानों पर केंद्रित है। भक्त अपने घरों में या सार्वजनिक पंडालों में गणेश की प्रतिमा स्थापित करते हैं। प्राण-प्रतिष्ठा नामक अनुष्ठान के माध्यम से मूर्ति में प्राण फूँके जाते हैं।
पूजन विधि:
प्रतिमा स्थापित होने के बाद, षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें 16 विभिन्न चरण शामिल होते हैं। इसमें मूर्ति को स्नान कराना, वस्त्र अर्पित करना, फूलों और दूर्वा घास से सजाना, धूप-दीप जलाना, और विशेष रूप से मोदक (मोदक) का भोग लगाना शामिल है, जो गणेश जी का सबसे प्रिय व्यंजन माना जाता है। दस दिनों तक भक्त सुबह और शाम पूजा-आरती करते हैं, भजन गाते हैं और दान-पुण्य करते हैं। उत्सव के अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, गणेश प्रतिमा का जल में विसर्जन किया जाता है। यह विसर्जन जीवन चक्र के प्रतीकात्मक अर्थ को दर्शाता है, जहाँ मिट्टी से बनी मूर्ति वापस प्रकृति में विलीन हो जाती है।
वर्तमान समय में त्योहारों का महत्त्व
आज के आधुनिक और व्यस्त जीवन में, त्योहारों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। ये हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं और हमारी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मदद करते हैं।
सामाजिक एकता: गणेश उत्सव जैसे सार्वजनिक आयोजन समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाते हैं। लोग मिलकर पंडाल सजाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं और एक-दूसरे के साथ ख़ुशियाँ साझा करते हैं।
सांस्कृतिक संरक्षण: ये त्योहार हमारी परंपराओं, कलाओं और अनुष्ठानों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम बनते हैं।
मानसिक शान्ति: भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में ये पर्व कुछ पल के लिए रुकने और अपनों के साथ समय बिताने का मौक़ा देते हैं, जिससे तनाव कम होता है और मन को शान्ति मिलती है।
गणेश उत्सव की वर्तमान प्रासंगिकता
बीसवीं सदी की शुरूआत में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक सार्वजनिक उत्सव का रूप दिया ताकि ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ लोगों को एकजुट किया जा सके। आज यह उत्सव उसी भावना के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन गया है।
वर्तमान में गणेश उत्सव की प्रासंगिकता कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है:
पर्यावरण संरक्षण: इस उत्सव ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। लोग अब पारिस्थितिकी-अनुकूल गणेश मूर्तियों (eco-friendly Ganesh idols) का उपयोग कर रहे हैं जो मिट्टी, काग़ज़ या अन्य प्राकृतिक सामग्रियों से बनी होती हैं। यह पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का एक सशक्त संदेश देता है।
कला और शिल्प को बढ़ावा: उत्सव के दौरान बनने वाले पंडाल और मूर्तियाँ कला का अद्भुत प्रदर्शन होते हैं, जो कलाकारों और कारीगरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर देते हैं।
सामुदायिक एकजुटता: शहरों में गणेश पंडाल सामाजिक गतिविधियों के केंद्र बन गए हैं। यहाँ विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, रक्तदान शिविर और अन्य सामाजिक पहल आयोजित की जाती हैं, जो लोगों को एक सार्थक उद्देश्य के लिए जोड़ती हैं।
गणेश चतुर्थी हमें सिखाती है कि बाधाओं को दूर करने के लिए बुद्धि, विवेक और एकता की आवश्यकता होती है। यह उत्सव हमें केवल गणेश की पूजा करना नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारना भी सिखाता है। यह पर्व दर्शाता है कि कैसे एक प्राचीन परंपरा आज भी आधुनिक समाज में प्रासंगिक बनी हुई है।
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- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- आज से विस्मृत किया सब
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुरु पूर्णिमा पर गीत
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- श्रावण
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- स्वास्थ्य
- स्मृति लेख
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- बाल साहित्य कविता
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- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
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