शिव

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

लेकर पुष्प कनेर
खड़ी हूँ। 
 
अभिलाषित मन लिए
शिव भोले के द्वार। 
लिए निज हाथों में
फूलों का उपहार। 
 
विकल व्यथित शिव द्वार
पड़ी हूँ। 
 
हँसे ये तमस घोर
जर्जर मन कमज़ोर। 
तन विकल कंटक पथ
थामा है भक्ति रथ। 
 
हार गई हूँ बहुत
लड़ी हूँ। 
 
शिव ही सत्य स्वरूप
जीवन गहरी धूप। 
अब तो शिव आधार
सम्हालो मेरा भार। 
 
तेरी चौखट कील
जड़ी हूँ। 

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