जल है तो कल है

01-08-2021

जल है तो कल है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बूँद बूँद जल के लिए, तरसा भारत खण्ड। 
दहक रहा सूरज सदिश, गर्मी विकट प्रचंड। 
 
गाँव गली सुनसान है, पनघट भी वीरान। 
अपने सूखे रूप से, क़ुदरत ख़ुद हैरान। 
 
वृक्ष नहीं हैं दूर तक, सूखे तपते खेत। 
कुआँ सूख गड्ढा बने, पम्प उगलते रेत। 
 
हरे भरे सब खेत थे, आज लगे श्मशान। 
बिन पानी सूखे पड़े, नदी नहर खलियान। 
 
मानव, पशु प्यासे फिरें, प्यासा सारा गाँव। 
सूनी सूनी सी लगे, वो बरगद की छाँव।
 
ताल तलैया रो रहे, बदरा गए विदेश।
धान सूख कचरा हुई, सूखे सब परिवेश। 
 

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