कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी

15-04-2022

कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

1.
पानी मुँह में आ गया, देख जलेबी गोल। 
प्यारी मम्मी आज ही, डाल जलेबी घोल। 
डाल जलेबी घोल, चाशनी गुड़ की होना। 
मीठी ये अनमोल, मुझे देना भर दोना। 
है मीठी मदमस्त, जलेबी मधुर सुहानी। 
गर्मागर्म अनूप, देख मुँह आता पानी। 
2.
रस डूबी उलझी लटें, जैसे गोरी नार। 
गर्म जलेबी देख कर, आया उस पर प्यार। 
आया उस पर प्यार, हाथ में उसको पकड़ा। 
मन मतंग मदमस्त, स्वाद ने मुझको जकड़ा। 
उलझी उलझी गोल, गिनाऊँ कितनी खूबी। 
लगती सबसे मस्त, जलेबी मन रस डूबी। 
3.
जीवन के सम ही लगे, गोल जलेबी गर्म। 
दोनों ही उलझे रहें, मगर निभाते धर्म। 
मगर निभाते धर्म, सहें दोनों ही पीड़ा। 
एक तेल में सिके, एक पथ कंटक कीड़ा। 
मधुरिम देते स्वाद, बाँटते ये अपनापन। 
मीठा हो व्यवहार, जलेबी हो या जीवन। 

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