(व्यवहारों का विश्लेषण करता आलेख-सुशील शर्मा)
“तुम बदल गए हो, अब पहले जैसे नहीं रहे।” यह वाक्य, विशेषकर अपनों के मुख से सुनना, एक गहरा मंथन उत्पन्न करता है। यह केवल एक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक समीक्षा है हमारे बदलते व्यवहारों पर, हमारे व्यक्तित्व के उस पहलू पर जो दूसरों की नज़रों में अब भिन्न प्रतीत होता है। इस परिवर्तन की गहराई में उतरना, इसके कारणों को समझना और विभिन्न दृष्टिकोणों से इसका विश्लेषण करना आवश्यक है।
अक्सर, जब लोग यह कहते हैं कि “तुम बदल गए हो,” तो उनका ध्यान मुख्य रूप से हमारे बाहरी व्यवहारों पर केंद्रित होता है। वे हमारी बातचीत के तरीक़े में आए बदलाव को महसूस करते हैं, हमारे प्रतिक्रिया देने के ढंग में आए अंतर को देखते हैं, या हमारी रुचियों और प्राथमिकताओं में हुए परिवर्तन को पाते हैं। हो सकता है कि हम अब उतने मिलनसार न रहे हों, या हमारी बातों में पहले जैसी सहजता न दिखती हो। यह भी सम्भव है कि हमारी कुछ आदतें बदल गई हों, जैसे कि समय पर उठना, लोगों से नियमित रूप से मिलना, या किसी विशेष शौक़ में सक्रिय रहना। इन प्रत्यक्ष व्यवहारों में आए बदलाव को देखकर ही लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि हम बदल गए हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि लोगों को ऐसा क्यों लगने लगता है कि हम बदल गए हैं? इसके कई प्रमुख कारण हैं, जिनमें से एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि लोग अक्सर केवल सामने वाले का व्यवहार ही देखते हैं, उसकी आंतरिक परिस्थितियों और अनुभवों को नहीं समझ पाते। हर व्यक्ति जीवन में विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और अनुभवों से गुज़रता है। ये अनुभव हमारी सोच, हमारी भावनाओं और अंततः हमारे व्यवहार को आकार देते हैं। हो सकता है कि हम किसी कठिन दौर से गुज़र रहे हों, किसी मानसिक तनाव का सामना कर रहे हों, या किसी ऐसी व्यक्तिगत समस्या में उलझे हों जिसका प्रभाव हमारे बाहरी व्यवहार पर पड़ रहा हो। ऐसी स्थिति में, हमारा स्वभाव थोड़ा रूखा या उदासीन हो सकता है, हमारी बातचीत संक्षिप्त और औपचारिक हो सकती है, या हमारी रुचियाँ सीमित हो सकती हैं। लेकिन, हमारे प्रियजन अक्सर इन आंतरिक संघर्षों को नहीं देख पाते और केवल हमारे बदले हुए व्यवहार के आधार पर यह मान लेते हैं कि हम पहले जैसे नहीं रहे।
दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण उम्र और सोच में परिवर्तन है। समय के साथ, हमारी प्राथमिकताएँ बदलती हैं, हमारी सोच का दायरा विस्तृत होता है, और जीवन को देखने का हमारा नज़रिया भी बदलता है।
किशोरावस्था और युवावस्था की ऊर्जा और उत्साह धीरे-धीरे अधिक परिपक्व और ज़िम्मेदार दृष्टिकोण में परिवर्तित हो सकते हैं। हमारी रुचियाँ शौक़ से करियर और परिवार की ओर मुड़ सकती हैं। हमारी बातचीतें हल्के-फुल्के विषयों से अधिक गंभीर और अर्थपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित हो सकती हैं। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन जो लोग हमें पहले से जानते हैं, वे इस परिवर्तन को “बदल जाना” के रूप में देख सकते हैं, ख़ासकर यदि यह परिवर्तन उनकी अपेक्षाओं या उनकी अपनी जीवन यात्रा से भिन्न हो।
तीसरा महत्त्वपूर्ण कारक परिस्थितियाँ हैं। जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय के साथ, हमारी पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। एक नई नौकरी, एक शहर का परिवर्तन, किसी प्रियजन का वियोग, या कोई बड़ी सफलता-ये सभी हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं और हमारे व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति पर अचानक बड़ी ज़िम्मेदारी आ जाती है, तो उसका व्यवहार अधिक गंभीर और केंद्रित हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक नए सांस्कृतिक परिवेश में जाता है, तो उसके बातचीत करने और प्रतिक्रिया देने के तरीक़े में स्वाभाविक रूप से कुछ बदलाव आ सकते हैं। इन परिस्थितियों के दबाव और आवश्यकताओं के अनुसार हमारे व्यवहार में आने वाले परिवर्तन को अक्सर “बदल जाना” समझ लिया जाता है।
इसके अतिरिक्त, कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं जो इस धारणा को जन्म देते हैं कि हम बदल गए हैं। संचार की कमी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। यदि हम अपने प्रियजनों के साथ नियमित रूप से संवाद नहीं करते हैं, अपनी भावनाओं और विचारों को साझा नहीं करते हैं, तो उन्हें हमारे जीवन में हो रहे परिवर्तनों के बारे में पता नहीं चल पाता। इससे एक दूरी बन जाती है और उन्हें लगता है कि हम उनसे दूर हो गए हैं या बदल गए हैं।
कभी-कभी, लोगों की अपनी अपेक्षाएँ और धारणाएँ भी इस भावना को जन्म देती हैं। हो सकता है कि हमारे प्रियजनों ने हमारे बारे में एक निश्चित छवि बना रखी हो और जब हम उस छवि से थोड़ा भी हटकर व्यवहार करते हैं, तो उन्हें लगता है कि हम बदल गए हैं। वे शायद हमें हमेशा वैसा ही देखना चाहते हों जैसा हम पहले थे, और किसी भी परिवर्तन को नकारात्मक रूप से लेते हों।
अंततः, यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि परिवर्तन जीवन का एक अभिन्न अंग है। हर व्यक्ति समय के साथ बदलता है, चाहे वह परिवर्तन सूक्ष्म हो या स्पष्ट। अनुभव हमें सिखाते हैं, परिस्थितियाँ हमें ढालती हैं, और उम्र हमें परिपक्व बनाती है। यह स्वाभाविक है कि हमारे व्यवहार, हमारी सोच और हमारी प्राथमिकताओं में बदलाव आए। महत्त्वपूर्ण यह है कि यह परिवर्तन सकारात्मक दिशा में हो और हमारे मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता न करे।
जब कोई प्रियजन यह कहता है कि “तुम बदल गए हो,” तो यह एक अवसर हो सकता है आत्म-चिंतन का। हमें यह विचार करना चाहिए कि क्या हमारे व्यवहार में कोई ऐसा नकारात्मक परिवर्तन आया है जिसे सुधारने की आवश्यकता है। हमें यह भी प्रयास करना चाहिए कि अपने प्रियजनों के साथ खुलकर संवाद करें, उन्हें अपनी परिस्थितियों और अपने अनुभवों के बारे में बताएँ, ताकि वे हमारे परिवर्तनों को बेहतर ढंग से समझ सकें। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें स्वयं को स्वीकार करना चाहिए-हमारे विकास और परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यही जीवन की गति है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- बाल साहित्य कविता
-
- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
- दोहे
-
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- क्षण भंगुर जीवन
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- जीवन
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रभु परशुराम पर दोहे
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बाबा साहब अम्बेडकर जयंती पर कुछ दोहे
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
- नाटक
- साहित्यिक आलेख
-
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
- कविता
-
- अधूरा सा
- अधूरी लिपि में लिखा प्रेम
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्कूल
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- कहने को अपने
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुमसे मिलकर
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तुम—मेरी सबसे अनकही कविता
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- नए वर्ष में
- पत्ते से बिछे लोग
- पीले अमलतास के नीचे— तुम्हारे लिए
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बहुत कुछ सीखना है
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- ब्राह्मणत्व की ज्योति
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मन का पौधा
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरी भूमिका
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- मैं वो नहीं
- मौन तुम्हारा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- रिश्ते
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- संघर्ष का सूर्योदय
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सिंदूर का प्रतिशोध
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
- सांस्कृतिक आलेख
- रेखाचित्र
- चिन्तन
- काम की बात
- कविता-मुक्तक
-
- अक्षय तृतीया
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गंगा
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
- गीत-नवगीत
-
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- आज से विस्मृत किया सब
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- कहानी
- सामाजिक आलेख
-
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- अबला निर्मला सबला
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गाय की दुर्दशा: एक सामूहिक अपराध की चुप्पी
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर: समता, न्याय और नवजागरण के प्रतीक
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
- काव्य नाटक
- लघुकथा
-
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
- कविता - हाइकु
- यात्रा वृत्तांत
- हाइबुन
- पुस्तक समीक्षा
- कविता - क्षणिका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीतिका
- अनूदित कविता
- किशोर साहित्य कविता
- एकांकी
- स्मृति लेख
- ग़ज़ल
- बाल साहित्य लघुकथा
- व्यक्ति चित्र
- सिनेमा और साहित्य
- किशोर साहित्य नाटक
- ललित निबन्ध
- विडियो
- ऑडियो
-