सपनों की उड़ान

15-09-2025

सपनों की उड़ान

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

गाँव की मिट्टी की गली से रोज़ सुबह एक नन्ही बालिका, सुषमा, अपने बिखरे बाल और हाथ में पुरानी सी कॉपी लेकर स्कूल की ओर दौड़ती थी। घर में अक्सर यह ताना मिलता—“लड़की होकर इतना पढ़-लिख कर क्या करेगी? रसोई ही तो सँभालनी है।” लेकिन उसकी आँखों में सपनों की चमक किसी नदी की लहरों की तरह थी—न रुकने वाली, न थमने वाली। 

एक दिन कक्षा में अध्यापिका से उसने पूछा, “मैडम, क्या मैं भी हवाई जहाज़ उड़ाना सीख सकती हूँ?” 

मैडम मुस्कराईं, “क्यों नहीं, बेटा? आकाश सबके लिए खुला है।” 

उस दिन से सुषमा की दुनिया बदल गई। अब वह हर सवाल के पीछे अपने सपनों का पंख खोजती। किताबों के पन्ने उसके लिए सीढ़ियाँ बन गए, और हौसले की उड़ान ने उसे बाँधने वाली हर बेड़ी तोड़ दी। 

सालों बाद वही बालिका, पायलट की वर्दी में गाँव के बच्चों से कह रही थी—“सपने लड़कियों और लड़कों के लिए अलग नहीं होते, फ़र्क़ बस इतना है कि हमें अपने सपनों पर यक़ीन करना होता है।” 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सांस्कृतिक आलेख
चिन्तन
लघुकथा
व्यक्ति चित्र
किशोर साहित्य कहानी
कहानी
कविता - क्षणिका
दोहे
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
कविता - हाइकु
साहित्यिक आलेख
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
रेखाचित्र
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में