आस-किरण

15-02-2022

आस-किरण

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

भले ही रोग का
तन पर हो साया। 
भले ही शैथिल्य की
मन पर हो छाया। 
 
अस्तगामी सूर्य भी
रस्ता दिखाता है। 
ऊँचे हुए मन से क्या
कोई पार पाता है। 
 
हो पीर भारी और
कंटक भरे पथ हों। 
निशा गहरी हो उन्मादी
तिमिर रथ हों। 
 
चलो संघर्ष पथ पर 
पीछे नहीं मुड़ना। 
नैराश्य के आकाश में
इक आस से जुड़ना। 
 
मिलेंगी मंज़िलें तुमको
आकाश पाओगे। 
अश्रु ढलके हैं जितने भी
उतने मुस्कुराओगे। 

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