वसंत पर गीत

01-03-2024

वसंत पर गीत

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

सज धज के धरा खिली
तन-मन बसंत हैं। 
 
गेंहूँ की बाल झुकी
बहती बयार है
ठिठक ठिठक चाल रुकी
मुस्काता प्यार है। 
भर उमंग अवनी नभ
मुस्काते दंत हैं। 
 
सरसों के खेत हँसे
पीला कछार है
प्रीतम संग नैन फँसे
इठलाती नार है। 
नैनों में प्यार लिए
मुस्काते कंत हैं। 
 
मलयानिल सुमन खिले
बौरी अमराई। 
पीतवर्ण पात हुए
अंतिम गति पाई। 
उन्मादी गंध बहे
ख़ुशियाँ अनंत हैं। 
 
गुंजित स्वछंद कुञ्ज 
छंदमय गीत हैं
सूर्य प्रखर मंगल मुद
जीवन संगीत है
मेरु शिखर शांत खड़े 
ध्यान मग्न संत हैं। 

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