शुद्धि की प्रतीक्षा

15-06-2025

शुद्धि की प्रतीक्षा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

काशी के घाट पर बैठा पंडित हर दिन गंगा जल से आचमन करता, और पर्यटकों को “गंगा माता” का महात्म्य समझाता। 

एक दिन एक बच्ची ने सवाल किया, “अगर गंगा माँ है तो हम उसमें गंदगी क्यों डालते हैं?” 

पंडित मौन रह गया। 

उस दिन से वह बच्ची हर सुबह प्लास्टिक बीनने लगी घाटों से, और उसकी नन्ही टोली बन गई “गंगा की बेटियाँ।” 

लोगों ने देखना शुरू किया, समझना शुरू किया। 

गंगा आज भी पवित्र है, 

बस उसे हमारी नीयत की शुद्धि की प्रतीक्षा है। 

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