बापू और शास्त्री–अमर प्रेरणा

15-10-2025

बापू और शास्त्री–अमर प्रेरणा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

दो अक्टूबर का सूरज
हमेशा ख़ास होकर उगता है, 
क्योंकि यही दिन हमें देता है
दो महामानवों की उजली धरोहर
एक ने सिखाया सत्य और अहिंसा, 
दूसरे ने जगाया मंत्र
जय जवान, जय किसान। 
 
बापू कहते हैं
सत्ता का मार्ग सेवा से गुज़रता है, 
स्वार्थ से नहीं। 
नफ़रत से केवल हिंसा जन्म लेती है, 
प्रेम ही शान्ति का आधार है। 
धर्म वह है
जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ दे। 
 
शास्त्री जी की आवाज़ गूँजती है
किसान का पसीना सूख गया
तो अन्न कहाँ से आएगा? 
जवान का हौसला टूटा
तो सीमा कैसे बचेगी? 
देश की ताक़त खेत और मोर्चे से ही
आती है। 
 
बापू की छवि
चरखे के साथ खड़ी है
हमें याद दिलाती है
सादगी ही सबसे बड़ा वैभव है, 
स्वावलंबन ही सबसे बड़ी आज़ादी है। 
 
शास्त्री जी का व्यक्तित्व
सादा कपड़ों में भी विराट था
उन्होंने दिखाया
कि ईमानदारी का क़द
किसी भी कुर्सी से ऊँचा होता है। 
 
आज जब
राजनीति में कटुता है, 
समाज में विभाजन है, 
प्रकृति पर संकट है, 
युवा भ्रमित हैं
तब यही दो स्वर
हमारे मार्गदर्शक बनते हैं। 
 
बापू कहते थे
स्वच्छता को पूजा बनाओ, 
सत्य को जीवन का आधार, 
और स्त्री-पुरुष को
समान अधिकार दो। 
 
शास्त्री जी कहते
आत्मनिर्भर बनो, 
अन्न का एक-एक दाना बचाओ, 
क्योंकि त्याग से ही
सच्चा विकास आता है। 
 
गाँधी और शास्त्री
दो शरीर नहीं, 
दो दीप हैं
जिनकी रोशनी हमें
आज भी दिशा देती है। 
 
दो अक्टूबर
सिर्फ़ कैलेंडर की तिथि नहीं, 
यह आत्मा का पर्व है। 
यह हमें याद दिलाता है
यदि हम ईमानदारी, 
सादगी, 
त्याग और सत्य को जी लें, 
तो बापू और शास्त्री
हमारे भीतर सदैव जीवित रहेंगे। 

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