स्वतंत्रता का सूर्य

01-09-2025

स्वतंत्रता का सूर्य

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

वह सुबह
जब आसमान ने पहली बार
गुलाल की लालिमा से
तिरंगे के रंग रचे थे, 
जब धरती ने अपनी देह पर
शहीदों के रक्त का सिंदूर सजाया था, 
और हवा में पहली बार
गूँजी थी
“हम आज़ाद हैं!”
 
यह आज़ादी
किसी दस्तावेज़ से नहीं आई थी, 
न किसी समझौते की मेज़ से, 
यह तो आई थी
तोप के धुएँ, 
फाँसी के फंदों, 
और जेल की काल कोठरियों की
गंध से लिपटी हुई। 
 
वो मंगल पांडे का विद्रोह था, 
जो गोली से नहीं
ज्वाला से जन्मा था। 
वो भगत सिंह का हँसता हुआ चेहरा था, 
जिसे मौत भी झुककर सलाम कर गई। 
वो चंद्रशेखर आज़ाद का संकल्प था, 
जो आख़िरी गोली अपने लिए बचाकर
आज़ाद ही रहा। 
वो नेताजी का बिगुल था—
“तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा“
जिसने नींद उड़ा दी थी ग़ुलामी की। 
 
यह आज़ादी
गाँधी के सत्याग्रह की दृढ़ता थी, 
नेहरू के सपनों की ऊँचाई थी, 
सरदार पटेल की लौह इच्छाशक्ति थी, 
मौलाना आज़ाद की शिक्षा का उजास था। 
 
हमारे खेतों में तब
गेहूँ नहीं, उम्मीदें उगती थीं, 
हमारे घरों में
अंग्रेज़ी हुकूमत का भय नहीं
बल्कि आज़ादी का गीत गूँजता था। 
 
और फिर
वह दिन आया
15 अगस्त 1947। 
जब तिरंगे की छाँव में
हमने पहली बार
अपना भविष्य अपने हाथों में थामा। 
 
पर, 
आज यह सवाल हमारे सामने है
क्या हम वैसी ही क़ीमत
अदा कर रहे हैं, 
जैसी हमारे पूर्वजों ने की थी? 
क्या हम स्वतंत्रता को
सिर्फ़ छुट्टी का दिन मान चुके हैं, 
या यह हमारे कंधों का भार है? 
 
स्वतंत्रता का अर्थ
केवल पराई सत्ता से मुक्ति नहीं, 
यह अपने भीतर के डर से आज़ादी है, 
भ्रष्टाचार, अन्याय, 
और असमानता की ज़ंजीरों को
तोड़ना है। 
 
आज के युवाओं, 
तुम्हारे हाथ में मोबाइल है, 
पर क्या उसमें
देश की मिट्टी की ख़ुश्बू है? 
तुम्हारे पास आज़ादी है, 
पर क्या उसमें
बलिदान का स्वाद है? 
 
हमारे लिए आज़ादी का मतलब होना चाहिए
बच्चों की आँखों में सपनों का होना, 
किसान के खेत में हरेपन का होना, 
सीमाओं पर खड़े सैनिक के चेहरे पर
विश्वास का होना, 
न्यायालय में सत्य का होना, 
और सड़कों पर
मानवता का होना। 
 
आओ, 
आज प्रतिज्ञा करें
कि हम इस स्वतंत्रता को
कभी क्षीण नहीं होने देंगे, 
इसे आने वाली पीढ़ियों तक
अक्षुण्ण पहुँचाएँगे। 
कि जब इतिहास
भविष्य से कहेगा—
“ये थे वो लोग
जिन्होंने स्वतंत्रता को सँभाला“
तो वह गर्व से
हमारा नाम लेगा। 
 
तिरंगे की तीन धाराओं की तरह
हम भी एक होकर, 
श्वेत की पवित्रता, 
हरे की समृद्धि, 
और केसरिया की वीरता
को अपने जीवन में उतारेंगे। 
 
क्योंकि यह सिर्फ़ झंडा नहीं है, 
यह उस रक्त, उस त्याग, 
और उस स्वप्न का प्रतीक है
जिसकी क़ीमत
किसी भी युग में
कम नहीं आँकी जा सकती।

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