अब वसंत भी जाने क्यों

15-03-2024

अब वसंत भी जाने क्यों

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

अब वसंत भी जाने क्यों
आता नहीं
हमारे घर
 
पीले सतरंगी मौसम में
धुआँ-धुआँ रिश्ते होते। 
आँधी में उजड़े उपवन में
फूल कहीं दुबके सोते। 
लिए उदासी पीले पत्ते
गिरते ख़ूब
हमारे घर। 
 
भाव रहित कवितायें रोतीं
कोलाहल हर ओर है। 
सूखी टहनी पीले पत्ते
सन्नाटे का शोर है। 
मुस्कानें रूठीं जीवन से
आतीं नहीं
हमारे घर। 
 
ऊँचे-ऊँचे भवन शहर में
जैसे ठूँठ खड़े जंगल। 
गाँवों में सन्नाटा छाया
बंद पड़े सब स्वर मंगल। 
अब चिड़ियाँ भी गीत सुनाने
आतीं नहीं
हमारे घर। 

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