चला गया दिसंबर

01-01-2022

चला गया दिसंबर

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सूरज के मुखड़े पर
कुहरे की चादर है।
 
हरा हरा गेहूँ है
डंठलों पर ओस है।
बादलों की धुँध में
धूप मन मसोस है।
 
दूर क्षितिज रेखा पर
ठिठुराता बादर है।
 
कानों पर टोपा है
सतरंगी स्वेटर है।
गुनगुनी रज़ाई में
सपनों का थेटर है।
 
नयनों के कोरों में
धूप सना आदर है।
 
धुँध धुँध बादल हैं
पेंच लड़ पतंगें हैं।
ठंड भरी सिहरन है
प्रीत पग उमंगें हैं।
 
चला गया दिसंबर
नया वर्ष सादर है।

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