हिंदी और आधुनिक तकनीक: डिजिटल युग में भाषा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

15-09-2025

हिंदी और आधुनिक तकनीक: डिजिटल युग में भाषा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

भाषा किसी भी समाज की धड़कन होती है, उसकी पहचान का सबसे गहरा निशान। यह मात्र संवाद का साधन नहीं, बल्कि सभ्यता की साँसों में घुला हुआ सांस्कृतिक रस, ज्ञान की अक्षुण्ण धारा और भावनाओं का जीवंत स्पंदन है। हिंदी, जो करोड़ों हृदयों की भाषा है, आज एक नए युग की दहलीज़ पर खड़ी है—एक ऐसा युग जहाँ सूचना और तकनीक का विराट सागर हिलोरें ले रहा है। यह डिजिटल युग अपनी अनंत संभावनाओं के साथ आया है, पर इसके जल में हिंदी के लिए कुछ अदृश्य चुनौतियाँ भी तैर रही हैं। यह संक्रमण काल हिंदी के सामर्थ्य और भविष्य की दिशा तय करेगा। 

चुनौतियों का गहन अंधकार

आज का सच यह है कि हमारे चारों ओर अंग्रेज़ी का प्रभुत्वशाली साम्राज्य खड़ा हो गया है। वैश्वीकरण की इस अंधी दौड़ में, जहाँ हर तरक़्क़ी का रास्ता अंग्रेज़ी से होकर गुज़रता है, वहाँ हमारी अपनी भाषा पिछड़ती जा रही है। शिक्षा के गलियारों से लेकर कॉर्पोरेट जगत की बैठकों तक, अंग्रेज़ी एक अनिवार्य शर्त बन गई है। परिणाम यह है कि हमारी नई पीढ़ी अपनी ही जड़ों से कट रही है। स्मार्टफोन की चकाचौंध स्क्रीन पर, सोशल मीडिया की दुनिया में, अंग्रेज़ी की एकतरफ़ा बादशाहत क़ायम है। ऐसा लगता है, जैसे हिंदी अपनी ही धरती पर एक अतिथि बनकर रह गई है। 

यह भाषाई प्रभुत्व केवल बोलचाल तक सीमित नहीं है। तकनीक के विशाल महासागर में हिंदी के लिए किनारों की कमी है। डिजिटल उपकरणों में हिंदी का समर्थन सीमित है। हमारे सॉफ़्टवेयर, ऑपरेटिंग सिस्टम और ऐप्स अभी भी अंग्रेज़ी की भाषा बोलते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उन्नत उपकरण, जैसे वॉयस असिस्टेंट और अनुवादक, हिंदी की बारीक़ियों को समझने में असमर्थ हैं। यह ऐसा है जैसे हम एक विशाल भवन में हैं, पर हमारे पास प्रवेश करने की चाबी नहीं है। तकनीकी शब्दावली का अभाव और मानकीकरण की कमी इस खाई को और चौड़ा करती है। विज्ञान, चिकित्सा या इंजीनियरिंग जैसे विषयों के लिए हिंदी के पास न तो पर्याप्त शब्द हैं और न ही उन शब्दों में सर्वमान्यता। यह भाषा की प्रगति में एक बड़ा अवरोध है। 

इसके साथ ही, डिजिटल साक्षरता की कमी एक और गंभीर चुनौती है। हमारा ग्रामीण भारत, जो हिंदी का हृदय है, आज भी तकनीक की इस नई दुनिया से पूरी तरह नहीं जुड़ पाया है। स्मार्टफोन पहुँच गए हैं, पर उन्हें ज्ञान के प्रवेश द्वार की तरह उपयोग करने का कौशल अभी भी दूर है। यह स्थिति भाषा और तकनीक के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी करती है। 

संभावनाओं का सूर्योदय

परंतु, इस घनी अँधेरी सुरंग के अंत में प्रकाश की किरणें भी हैं। हिंदी का सबसे बड़ा सामर्थ्य उसका व्यापक जनसमुदाय है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में फैले प्रवासी भारतीयों के करोड़ों कंठों में हिंदी जीवंत है। यह जनसंख्या एक ऐसा विशाल उपयोगकर्ता आधार है जिसे कोई भी तकनीक अनदेखा नहीं कर सकती। 

आज सोशल मीडिया एक नव-साहित्य का उद्गम स्थल बन गया है। फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे मंचों पर हिंदी सामग्री का सैलाब आया है। ब्लॉग, कविताएँ, कहानियाँ और विचार हिंदी में अभिव्यक्त हो रहे हैं। यहाँ भाषा किसी व्याकरण के बँधन में नहीं, बल्कि जन-जन की भावना बनकर प्रवाहित हो रही है। यह वह भूमि है जहाँ हिंदी ने अपनी खोई हुई लोकप्रियता को फिर से पाया है। 

इसके अतिरिक्त, ई-लर्निंग और डिजिटल शिक्षा ने हिंदी को एक नया जीवन दिया है। अब ज्ञान शहरों की सीमाओं में क़ैद नहीं है। ऑनलाइन पाठ्यक्रम, वीडियो व्याख्यान और ई-पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होकर गाँव-गाँव तक पहुँच रही हैं। यह तकनीक शिक्षा को लोकतांत्रिक बना रही है और हिंदी को ज्ञान का माध्यम। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन अनुवाद का बढ़ता विकास एक तकनीकी वरदान है। AI आधारित चैटबॉट, आवाज़ पहचान प्रणाली और अनुवाद सॉफ़्टवेयर भविष्य में हिंदी के लिए वह पुल बनेंगे जो इसे ज्ञान-विज्ञान की विश्वव्यापी धाराओं से जोड़ेगा। 

हिंदी फ़िल्मों, वेब सीरीज़ और पॉडकास्ट ने भाषा को सांस्कृतिक और मनोरंजक माध्यम के रूप में एक नई ऊँचाई दी है। यह हिंदी का रचनात्मक विस्तार है, जो उसे केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर बना रहा है। 

आगे का मार्ग–मिलकर चलने का संकल्प

यह समय हाथ पर हाथ धरे बैठने का नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास का है। हमें तकनीकी विकास में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार और निजी संस्थाओं को मिलकर ऐसे ऐप और सॉफ़्टवेयर बनाने होंगे जो हिंदी की प्रकृति के अनुकूल हों। हमें मानकीकृत शब्दावली का एक महासागर तैयार करना होगा ताकि तकनीक, विज्ञान और चिकित्सा जैसे विषयों में हिंदी को कोई शब्द-सूखा न महसूस हो। 

डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देकर हम ग्रामीण भारत को सशक्त कर सकते हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों और ई-पुस्तकों को हर बच्चे तक पहुँचाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। सोशल मीडिया का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि भाषा की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए करना होगा। बच्चों और युवाओं के लिए खेल-आधारित ऐप्स, इंटरैक्टिव प्लैटफ़ॉर्म और डिजिटल प्रतियोगिताएँ हिंदी को बोझिल नहीं, बल्कि रुचिकर बना सकती हैं। 

हिंदी आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहाँ एक ओर परंपरा है और दूसरी ओर आधुनिकता। चुनौतियाँ हैं, परन्तु संभावनाएँ कहीं अधिक व्यापक और उज्ज्वल हैं। यदि हम हिंदी को तकनीक का सारथी बनाएँ, उसे ज्ञान और विज्ञान की भाषा के रूप में समृद्ध करें, और उसे नई पीढ़ी के दिलो-दिमाग़ तक पहुँचाने का सामूहिक प्रयास करें, तो यह भाषा न केवल भारत की पहचान बनेगी, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक संवाद में अपना गौरवशाली स्थान पुनः प्राप्त करेगी। 

हिंदी का भविष्य हमारे हाथों में है। हमें अपनी भाषा का सम्मान करना होगा, उसे आधुनिकता का आभूषण पहनाना होगा, और उसे हर घर, हर दिल और हर स्क्रीन तक पहुँचाना होगा। हिंदी बोले–तकनीक से जुड़े–संस्कृति का गौरव बनाए। यही हमारा संकल्प होना चाहिए। 

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