जंगल बुक -4 'आरे के जंगल पर आरियाँ'
डॉ. सुशील कुमार शर्मापात्र - शेर, तोता, हाथी, गौरैया, तितली, साँप, अदालत, नेता, आरे जंगल के निवासी
अदालत
सरकारी वकील की दलीलें सुनने के बाद अदालत इस फैसले पर पहुँची है कि आरे के कुछ पेड़ काटने ज़रूरी हैं ताकि वहाँ पर मेट्रो का शेड बनाया जा सके। वैसे भी आरे एरिया कोई जंगल नहीं है और रहवासी क्षेत्र है। विकास के लिए कुछ पेड़ अगर काट भी दिए जाएँ तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि भविष्य के भारी प्रदूषण से बचने के लिए इन काटा जाना ज़रूरी है। अतः अदालत करीब ढाई हज़ार पेड़ काटने की अनुमति प्रदान करती है।
(सभी जानवर एकत्रित होकर शेर के पास जाते हैं और पेड़ काटे जाने का विरोध करते हैं।)
हाथी
ये तो ना इंसाफ़ी है इतने सारे पेड़ कटेंगे फिर हम लोग बेघर हो जायेंगे, हम लोग कहाँ जायेंगे?
तोता
आपको ये पर्यावरण का विनाश नहीं लगता शेर महोदय, क्या पर्यावरण की क़ीमत पर विकास ज़रूरी है?
शेर
मुझे भी दुःख है लेकिन अदालत का आदेश है मैं क्या करूँ।
तितली
आप लोग मुझसे मेरा घर कैसे छीन सकते हैं?
नेता पक्ष
हम भी इस बात का विरोध करते हैं आख़िर ऐसे में हमें कौन वोट देगा?
नेता विपक्ष
ये घड़ियाली आँसू मत बहाओ, ये सब सरकार का ही तो किया धरा है।
आरे का निवासी
हम सभी बहुत दुखी हैं जैसे एक बेटा अपनी माँ के बग़ैर नहीं रह सकता, वैसे ही हम इस जंगल के बिना नहीं रह सकते। एक पेड़ सिर्फ़ पेड़ नहीं होता। उसमें छिपकली, बिच्छू, कीड़े, झींगुर और चिड़िया भी रहती हैं। हर पेड़ की अपनी इकॉलजी है। यह सिर्फ़ पेड़ की नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की बात है।
साँप
सरकारी लोग कह रहे हैं कि किसी भी आदिवासी या वन्यजीव की जगह को कार डिपो के लिए नहीं लिया जाएगा; साथ ही उन्होंने कहा है कि इलाक़े में यात्रा करने के दौरान हर दिन 10 लोग मर जाते हैं। मेट्रो शुरू होने के बाद मुंबई के स्थानीय लोगों का तनाव कम हो जाएगा।
शेर
देखिये आप लोग चिंतित न हों। हम सब मिल बैठ कर इस मसले का हल निकालेंगे।
पर्यावरण विद्
अगर इस तरीक़े से विकास के नाम पर पेड़ों पर आरी चलती रही तो कंक्रीट के जंगलों के बीच हम छाँव को तरसते रहेंगे और हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इन हालातों के जनक भी हम ही हैं। दस गुने पेड़ लगाने का दावा करने वालों ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर ‘ग्रीन बेल्ट’ के लिए जगह तक नहीं छोड़ी है।
हाथी
और उस पर ये तुर्रा की हम विकास कर रहे हैं।
तोता
हमारी प्रजाति तो विनाश के कगार पर है। आज शहर में आपको सिर्फ़ कहावत हाथ के तोते उड़ गए भर सुनाई पड़ेगी; लेकिन उड़ते हुए तोते कहीं नहीं दिखेंगे।
आरे निवासी
यहाँ क़रीब पाँच लाख पेड़ हैं और सरकार कहती है कि ये जंगल नहीं है। क्या आप लोग इस बात पर विश्वास करेंगे?
जिराफ
उन्हें यह जंगल काट कर कांक्रीट का जंगल बनाना है और फिर उस कंक्रीट के जंगल में विकास का उद्घोष होगा- पेड़ बचाओ, बेटी बचाओ, पर्यावरण पर घड़ियाली आँसू बहाये जायेंगे।
(अचानक वहाँ से कुल्हाड़ी और आरी से जंगल काटने की आवाज़ें आने लगती हैं। सभी वहाँ जाकर देखते हैं तो पीपल, आम, शीशम और अनगिनित पेड़ नीचे कटे हुए कराह रहे हैं।)
आम
मैंने आपका क्या बिगाड़ा है। मैं गर्मियों में आपको कितने मीठे फल खिलाता हूँ। क्या इन सेवाओं का हमें यही सिला मिलेगा? क्यों लगाते हो हमें जब हमें काटना ही है तो; पर्यावरण, पौधा रोपण, नदी बचाओ, पेड़ लगाओ जैसे फ़र्ज़ी नारे क्यों देते हो?
पीपल
अलविदा दोस्तो अब जाता हूँ। मैंने, जब तक ज़िन्दा रहा तुम लोगों को ख़ूब ऑक्सीजन दी। कार्बन डाई ऑक्साइड से तुम्हारी रक्षा की। सोचा था तुम्हारे बच्चों को भी ऑक्सीजन दूँगा। लेकिन मेरी गर्दन काट दी गई अलविदा दोस्तो। ....
(सभी लोग पीपल के पेड़ से लिपट कर रोने लगते हैं, सरकारी कारिंदे एक-एक कर पेड़ काटते जाते हैं। जिन्होंने विरोध किया उनको पुलिस वहाँ से हटा देती है, आरे जंगल के सामने एक बड़ा बोर्ड चमक रहा है जिस पर लिखा है 'जंगल हमारा अस्तित्व हैं आओ इसे बचाएँ, पेड़ लगाएँ, पर्यावरण संरक्षण महान धर्म है।’और उसी जंगल में असहाय पेड़ों पर आरियाँ चल रहीं थीं।)
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