चलो होली मनाएँ

01-04-2021

चलो होली मनाएँ

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

भूलकर सब वर्जनाएँ
चलो होली मनाएँ।
 
वास्तविकता की धरा पर
अंध सपने छोड़ कर।
भूलकर सब भूत बातें
समय का मुख मोड़ कर।
 
सर्जना के शिखर चढ़ कर
चलो सपने सजाएँ।
 
है भले घनघोर तम पर
एक दीपक जल रहा।
शूल कंटक पथ बिछे पर
तन अनवरत चल रहा।
 
रँग श्रम के अंग लेकर
चलो पर्वत नवाएँ।
 
है प्रभंजन घोर झंझा
घाव पग पग हरे हैं।
है सफलता दूर लेकिन
आस से मन भरे हैं।
 
प्रेम के सब रंग लेकर
चलो सूरज झुकायें।
 
प्रेम की रोली लगा कर
स्नेह अभिनंदन करें
कलुष मन का हम मिटायें
सोच को चंदन करें।
 
रंग में सब नेह डाले
चलो भूलें व्यथाएँ।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
दोहे
काव्य नाटक
कविता
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में