अब का सावन

15-07-2023

अब का सावन

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


मुँह उजियारे बादल आया
सावन लगा चहकने। 
 
हरी-हरी दूबों के फुनगे
अँगड़ाई हैं लेते। 
हरे बाँस हँस
गौरैया के
प्यारे अंडे सेते। 
मधुकामनी फूली-फूली
चम्पा लगी महकने। 
 
लम्बी प्यासें
मन की आसें
खेत हुए सपनीले। 
देह आषाढ़ और
मन सावन
सपने गीले-गीले। 
उफनाते सब ताल-तलैया
नदियाँ लगीं बहकने। 
 
पानी-पानी
रिश्तें हैं सब
शहर डुबोता वाटर। 
महँगाई नभ को छूती सी
ग़ुस्सा हुआ टमाटर। 
सूनेपन को भोग-भोग कर
पीड़ा लगी दहकने। 
 
सुशील शर्मा

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