गमलों में है हरियाली

15-07-2022

गमलों में है हरियाली

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

नंगे पर्वत सूखी नदियाँ
गमलों में है हरियाली। 
 
नीरवता गाँवों में बिखरी
बूढ़ा बरगद ठूँठ खड़ा है। 
पगडण्डी सब सूनी-सूनी
धरती पर आकाश पड़ा है। 
 
सरसों के पीले अधरों पर
सन्नाटे की वो प्याली। 
 
निर्वासन में सत्य खड़ा है
झूठ घूमता बन कर धाँसू। 
न्याय क़ैद ऊँचे भवनों में
मिलें ग़रीबों को बस आँसू। 
 
लकदक कुरता लम्बी बातें
आँसू बहते घड़याली। 
 
काम ढूँढ़ते दिन सब गुज़रे
थके हाथ कंधे लटके हैं। 
महँगाई डायन बन खाये
पेट सभी के क्यों पटके हैं। 
 
ढूँढ़ रहें हम जाने कबसे
वो ख़ुशियाँ मन भर ख़्याली। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में