मेरी बिटिया

01-07-2023

मेरी बिटिया

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

वो आई थी
एक गुलाब जैसी
महकती बंद आँखें
छोटे छोटे गुलाबी मख़मली हाथ
नन्हे नन्हे सिंदूरी पैर
लगा जैसे परी आ गई
मेरे घर
बचपन से ही इतनी समझदार
जैसे बूढ़ी दादी हो। 
 
उसने कभी नहीं माँगे खिलौने
न कभी की नए
कपड़ों की फ़रमाइश। 
जो मिला उसी में संतुष्ट हो ली। 
हर समय पढ़ना
हर समय शांत
उसे बचपन से ही मालूम था
कि वह लड़की है सो उसने
कभी नहीं माँगा चाँद। 
 
हर अभाव में वह ख़ुश थी
हर परिस्थिति से समझौता
बन गयी उसकी आदत। 
जीवन के कठोर धरातल पर
अपने माता पिता के संघर्ष को सरल बनाती। 
चलती गई मंज़िल की ओर। 
 
अपने पापा को हर पल
किया उसने गौरवान्वित। 
पढ़ाई हो परीक्षा हो 
कोई भी मुक़ाबला हो
उसने हर जगह पाया 
पहला स्थान। 
 
अपनी 
सब इच्छाओं को
दबा कर वह चलती गयी
पापा ने तो उसको कुछ नहीं दिया 
लेकिन उसने पापा को
हमेशा गर्व के पल दिए। 
 
वह पापा की बेटी है
वह पापा का भविष्य है
वह पापा का घमंड है
वह पापा का गुलट्टा है
वह पापा का लड्डू है
उसे पापा का आशीर्वाद है
वह हमेशा प्रसन्न और ख़ुश रहे। 

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