माँ ‘छाया की तरह’!

15-06-2025

माँ ‘छाया की तरह’!

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

रजत आईआईटी में पढ़ता था, व्यस्त दिनचर्या में माँ को फ़ोन करना भूल जाता। 

एक दिन घर लौटा तो माँ चुप थी, पर थाली में गर्म रोटियाँ थीं। 

रजत बोला, “माँ, तुम कुछ कहती क्यों नहीं?” 

माँ बोली “बेटा, माँ बोलती नहीं . . . वो तुम्हारे पीछे छाया बनकर चलती है, ताकि तुम्हारी परछाईं भी अकेली न हो।”

रजत की आँखें भीग गईं। 

वह समझ गया माँ की उपस्थिति को शब्दों में नहीं, संवेदनाओं में महसूस किया जाता है। 

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