श्रावण

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

श्रावण की बूँदें हैं पावन, हरियाली मन भाए। 
मन मंदिर में भक्ति जगे नित, शिव का नाम सुहाए॥
 
मेघों की वाणी मधुरिम है, कजरारे नभ छाए। 
सावन सजा फुहारों में अब, तन-मन भीगें जाए॥
गौरी करें अर्चना शिव की, जपें निरंतर भोले। 
बेल पत्र अर्पित कर-कर के, शिव चरणों को धोले॥
 
जन मानस भक्ति में डूबा, शिव का रंग चढ़ाए। 
श्रावण की बूँदें हैं पावन, हरियाली मन भाए॥
 
काँवड़िए गाते हर-हर बम, पथ में नर्तन करते। 
गंगाजल अभिषेक करें सब, भोले झोली भरते॥
व्रत उपवास करें सब नारी, मंगल रूप सजाए। 
श्रद्धा, संयम, संकल्पों का, अनुपम रंग चढ़ाए॥
 
जीवन के नव अनुबंधों में, मन के रंग रँगाए। 
श्रावण की बूँदें हैं पावन, हरियाली मन भाए॥
 
वन, उपवन सब हरे-भरे हैं, जीवन रस बरसाए। 
धरती माँ की गोद सजी अब, नवल रंग मुस्काए॥
भक्ति, प्रकृति, प्रेम का संगम, आशा नई जगाए। 
सजता सावन, संवरे तन मन, गोरी मन शरमाए। 
 
त्योहारों का पावन मौसम, मन में भक्ति जगाए। 
श्रावण की बूँदें हैं पावन, हरियाली मन भाए॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत
कविता
कहानी
सामाजिक आलेख
दोहे
कविता - हाइकु
कविता-मुक्तक
कविता - क्षणिका
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
लघुकथा
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
साहित्यिक आलेख
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में