मौन तुम्हारा

01-05-2025

मौन तुम्हारा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

क्या तुम्हारे मौन को स्वीकार समझूँ या मेरी पराजय
 
तुम चुप रहे, 
जब मैंने शब्दों की देहरी पर
भावों के दीप जलाए। 
तुम मौन रहे, 
जब मेरी दृष्टि ने
तुम्हारी आँखों में प्रश्न उकेरे। 
 
मैंने प्रतीक्षा की
किसी संकेत की, 
किसी ठंडी साँस की, 
किसी काँपते होंठ की हल्की सी कम्पन की—
पर तुम मौन रहे। 
 
क्या तुम्हारा यह मौन
इनकार था? 
या . . . 
कोई अधूरा स्वीकार? 
 
क्या यह चुप्पी
कोई दीवार है, 
या कोई पुल
जो तुम तक जाने से पहले ही
रोक लेता है
मन का रास्ता। 
 
मैं अब भी वहीं खड़ा हूँ, 
जहाँ तुमने मुझे छोड़ा था—
शब्दों की देहरी पर, 
भावों के दीप लिए। 
 
पर अब मैं पूछता हूँ—
सच में, 
क्या तुम्हारे मौन को
स्वीकार समझूँ? 
या
उसी मौन में
खोजता रहूँ अपना पराजय गीत? 

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