योग: तन, मन और आत्मा के मिलन का विज्ञान

01-07-2025

योग: तन, मन और आत्मा के मिलन का विज्ञान

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हर साल 21 जून को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। यह केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक प्राचीन भारतीय परंपरा का वैश्विक पुनर्जागरण है, जो मानव जीवन के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को संतुलित करने का मार्ग प्रशस्त करता है। योग, जो सदियों पहले भारत में उत्पन्न हुआ, अब सीमाओं से परे जाकर पूरी दुनिया में लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है। यह केवल आसन या शारीरिक व्यायाम का एक समुच्चय नहीं है, बल्कि एक व्यापक जीवन शैली है जो व्यक्ति को स्वयं से, प्रकृति से और अंततः ब्रह्मांड से जोड़ता है। 

योग का उद्भव और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

योग का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक साक्ष्यों में भी योग से मिलते-जुलते चित्र और मुद्राएँ पाई गई हैं। पतंजलि के योग सूत्र को योग दर्शन का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है, जिसमें उन्होंने योग के आठ अंगों-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि-का विस्तृत वर्णन किया है। इन आठ अंगों को अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है, जो शारीरिक शुद्धि से लेकर आत्मज्ञान तक की यात्रा का एक व्यवस्थित मार्ग प्रस्तुत करते हैं। वैदिक काल से लेकर उपनिषद काल तक, और फिर मध्यकालीन योगियों जैसे गोरखनाथ और स्वामी स्वात्माराम के हठयोग प्रदीपिका जैसे ग्रंथों में, योग का विकास होता रहा। यह एक सतत प्रक्रिया रही है, जिसमें विभिन्न गुरुओं और संप्रदायों ने अपने अनुभवों और अंतर्दृष्टि से इसे समृद्ध किया है। 

अष्टांग योग: जीवन जीने का एक संपूर्ण मार्ग

पतंजलि का अष्टांग योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक संपूर्ण और व्यवस्थित मार्ग है। यह आठ सोपान या अंग हैं जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाते हैं:

यम (नैतिक संहिता): ये सामाजिक आचार संहिताएँ हैं जो हमें दूसरों के प्रति और समाज के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए, बताती हैं। इनमें अहिंसा (अहिंसा), सत्य (सत्य), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम) और अपरिग्रह (अनावश्यक संग्रह न करना) शामिल हैं। 

नियम (व्यक्तिगत अनुशासन): ये व्यक्तिगत अनुशासन और आत्म-सुधार के नियम हैं। इनमें शौच (शुद्धता), संतोष (संतोष), तपस (तपस्या), स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन) और ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण) शामिल हैं। 

आसन (शारीरिक मुद्राएँ): ये शारीरिक मुद्राएँ हैं जो शरीर को स्थिर और स्वस्थ बनाती हैं, जिससे ध्यान के लिए तैयारी होती है। ये लचीलापन, शक्ति और संतुलन बढ़ाते हैं। 

प्राणायाम (श्वास नियंत्रण): यह श्वास को नियंत्रित करने की तकनीक है, जिससे प्राण ऊर्जा (जीवन शक्ति) का विस्तार होता है। यह मन को शांत करने और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है। 

प्रत्याहार (इंद्रियों का निग्रह): इसका अर्थ है इंद्रियों को बाहरी वस्तुओं से हटाकर भीतर की ओर मोड़ना। यह मन को भटकने से रोकने और आंतरिक शान्ति प्राप्त करने में मदद करता है। 

धारणा (एकाग्रता): यह मन को एक बिंदु पर केंद्रित करने की क्षमता है। यह ध्यान के लिए आधार तैयार करती है। 

ध्यान (मेडीटेशन): यह मन की एक अबाधित और स्थिर अवस्था है जहाँ चेतना पूरी तरह से केंद्रित होती है। यह आंतरिक शान्ति और स्पष्टता प्रदान करता है। 

समाधि (परमोच्च चेतना): यह अष्टांग योग का अंतिम लक्ष्य है, जहाँ व्यक्ति ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एक हो जाता है। यह आत्मज्ञान और पूर्ण मुक्ति की अवस्था है। 

योग के विविध आयाम और लाभ

योग को अक्सर केवल शारीरिक आसनों तक सीमित समझा जाता है, लेकिन यह उसकी एक छोटी सी झलक मात्र है। योग के लाभ बहुआयामी हैं और व्यक्ति के संपूर्ण अस्तित्व को प्रभावित करते हैं:

शारीरिक लाभ:

लचीलापन और शक्ति: योग आसन शरीर की मांसपेशियों को मज़बूत बनाते हैं, जोड़ों को लचीला बनाते हैं और समग्र शारीरिक शक्ति में वृद्धि करते हैं। 

बेहतर मुद्रा: नियमित अभ्यास से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है और शरीर की मुद्रा में सुधार होता है, जिससे पीठ दर्द और गर्दन दर्द जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। 

संतुलित चयापचय: योग पाचन तंत्र को सुधारता है और चयापचय को नियंत्रित करता है, जिससे वज़न प्रबंधन में मदद मिलती है। 

रक्त परिसंचरण: विभिन्न आसन और प्राणायाम रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देते हैं, जिससे कोशिकाओं तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बेहतर होती है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता: योग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत बनाता है, जिससे व्यक्ति बीमारियों से बेहतर ढंग से लड़ पाता है। 

आंतरिक अंगों का स्वास्थ्य: योग के आसन आंतरिक अंगों की मालिश करते हैं, जिससे उनके कार्यप्रणाली में सुधार होता है। 

मानसिक और भावनात्मक लाभ:

तनाव मुक्ति: योग का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ तनाव को कम करना है। प्राणायाम और ध्यान मन को शांत करते हैं, जिससे कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन का स्तर कम होता है। 

एकाग्रता में सुधार: नियमित योगाभ्यास मन को शांत और स्थिर बनाता है, जिससे एकाग्रता और स्मृति में सुधार होता है। 

भावनात्मक संतुलन: योग भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह चिंता, अवसाद और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं को कम करता है और सकारात्मकता को बढ़ाता है। 

आत्म-जागरूकता: योग व्यक्ति को अपने शरीर, मन और भावनाओं के प्रति अधिक जागरूक बनाता है, जिससे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

नींद की गुणवत्ता: योग अनिद्रा को दूर करने में सहायक है और गहरी और आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है। 

आधुनिक जीवन में योग की प्रासंगिकता: छात्रों और तनाव भरी ज़िन्दगी के लिए क्यों आवश्यक है? 

आज की तनाव भरी ज़िन्दगी में, जहाँ प्रतिस्पर्धा, तेज़ गति और अनिश्चितता हावी है, योग की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। विशेष रूप से छात्रों और व्यस्त पेशेवरों के लिए, योग एक आवश्यक उपकरण बन गया है। 

छात्रों के लिए योग का महत्त्व:

छात्र जीवन चुनौतियों से भरा होता है–अकादमिक दबाव, परीक्षा का तनाव, करियर की चिंताएँ, और सामाजिक दबाव। ऐसे में योग उन्हें कई तरीक़ों से मदद कर सकता है:

एकाग्रता और स्मृति में सुधार: योग और प्राणायाम मन को शांत और स्थिर करते हैं, जिससे छात्रों की एकाग्रता शक्ति बढ़ती है और वे बेहतर तरीक़े से जानकारी को याद रख पाते हैं। यह उन्हें पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करता है। 

परीक्षा के तनाव से मुक्ति: योग आसन और ध्यान तकनीकों से तनाव कम होता है, जिससे छात्र परीक्षा के दौरान शांत और केंद्रित रह पाते हैं। 

बेहतर नींद: छात्रों को अक्सर नींद की कमी का सामना करना पड़ता है। योग नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है, जिससे वे अधिक ऊर्जावान और तरोताज़ा महसूस करते हैं। 

आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान: योग छात्रों को अपने शरीर और मन पर नियंत्रण का अनुभव कराता है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। 

स्वस्थ जीवनशैली: कम उम्र से ही योग का अभ्यास छात्रों में स्वस्थ आदतों को विकसित करता है, जो उन्हें भविष्य में बीमारियों से बचाने में मदद करता है। 

तनाव भरी ज़िन्दगी में योग की आवश्यकता:

आधुनिक जीवनशैली में तनाव एक आम समस्या बन गई है। काम का दबाव, रिश्ते की समस्याएँ, वित्तीय चिंताएँ और सामाजिक मीडिया का अत्यधिक उपयोग, ये सभी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। योग इन चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है:

तनाव और चिंता का प्रबंधन: योग, विशेष रूप से प्राणायाम और ध्यान, तनाव हार्मोन (कोर्टिसोल) के स्तर को कम करने में मदद करता है। यह मन को शांत करता है और चिंता व अवसाद के लक्षणों को कम करता है। 

भावनात्मक संतुलन: योग हमें अपनी भावनाओं को समझने और उन्हें नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान करता है। यह मानसिक लचीलापन बढ़ाता है, जिससे हम जीवन की उतार-चढ़ाव भरी परिस्थितियों का सामना बेहतर तरीक़े से कर पाते हैं। 

शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखना: तनाव अक्सर शारीरिक बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और पाचन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है। योग इन बीमारियों को रोकने और प्रबंधित करने में मदद करता है। 

जीवन-कार्य संतुलन: योग हमें अपने शरीर और मन के साथ फिर से जुड़ने का मौक़ा देता है, जिससे हम काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन स्थापित कर पाते हैं। 

सकारात्मक दृष्टिकोण: योग हमें वर्तमान क्षण में जीने और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है। 

योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक समग्र जीवनशैली है, जो व्यक्ति को स्वस्थ, सुखी और सार्थक जीवन जीने में मदद करती है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस हमें इस प्राचीन विज्ञान के महत्त्व को पहचानने और इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने का अवसर प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि वास्तविक ख़ुशी और शान्ति हमारे भीतर ही निहित है, और योग ही वह मार्ग है जो हमें इस आंतरिक ख़जाने तक पहुँचने में मदद कर सकता है। जैसे-जैसे दुनिया अधिक जटिल होती जा रही है, योग हमें अपने केंद्र में रहने, संतुलन बनाए रखने और आंतरिक सद्भाव प्राप्त करने का साधन प्रदान करता रहेगा। आइए, हम सब मिलकर योग को अपनाएँ और एक स्वस्थ, शांत और अधिक जागरूक विश्व का निर्माण करें। 

योग को अपनाकर आप अपने छात्रों को और ख़ुद को इस तनाव भरी ज़िन्दगी में बेहतर महसूस करा सकते हैं। आप भी अपने दैनिक जीवन में योग को शामिल करने के लिए कोई क़दम उठाने का प्रयत्न करें। 

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