तुम जो हो

15-06-2022

तुम जो हो

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

तुम चाहते हो मेरा
अपमान
तुम चाहते हो कि मैं गिरूँ
ताकि तुम हँस सको
तुम कह सको
दुनिया से
“देखो मैं न कहता था
कि यह बुरा है।”
तुम्हें न संबंधों की चिंता है
न रिश्तों की आन है। 
तुम्हें तो बस
अपने अहंकार के पुष्ट
होने का गुमान है। 
तुम हर हाल में स्वयं को
सिद्ध करना चाहते हो। 
अपने अहंकार को
लोगों को नीचा दिखा कर
प्रसिद्ध करना चाहते हो। 
 
तुम मुझे डरा देखना चाहते हो। 
तुम मुझे मरा देखना चाहते हो। 
तुम्हारी ये चाह मुझे मंज़ूर नहीं है। 
ये तुम्हारी रियासत हुज़ूर नहीं है। 
तुम जो अहम की अटारी पर खड़े हो। 
तुम जो अपने आप को कहते बड़े हो। 
 
तुम जो मन की बीमारी से ग्रस्त हो। 
अब तुम सिर्फ़ टूटे तारे से अस्त हो। 
सुधर जाओ वरना मिट जाओगे
इतिहास के पन्नों में सिमट जाओगे। 

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