उर में जो है

15-03-2023

उर में जो है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


उर में जो है निहित भाव, 
मुख पर प्रतिबिंबित हो। 
 
प्रतिपल स्पंदित निग्ध प्रेम हो
या कृपण घृणा की हाला हो। 
हो रहस्य का अकथ आवरण, 
या प्रकट भाव की माला हो। 
 
जीवन का संस्पर्श समर्पण, 
अंदर से स्पंदित हो। 
 
कठिन कराल असह पथ हो, 
या पुष्प बिछी अमराई हो। 
हो गिरिवर के उत्तुंग शिखर, 
या सागर की गहराई हो। 
 
जीवन है उलझन में उलझा, 
फिर भी मन आनंदित हो। 
 
कसक उठी क्यों सहसा मन में, 
व्योम वेदना भारी है। 
मधु मंजूषा की प्याली में, 
कम्पित टीस हमारी है। 
 
अनुरागी उन्माद उल्लसित
मलय साँस मधु रंजित हो। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
कविता
लघुकथा
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
दोहे
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
साहित्यिक आलेख
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
गीत-नवगीत
कहानी
काव्य नाटक
कविता - हाइकु
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
स्मृति लेख
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में