सृष्टि का संगीत हैं बच्चे

15-11-2025

सृष्टि का संगीत हैं बच्चे

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

(बाल दिवस पर कविता) 

 

प्यारे बच्चो तुम
धरती पर उतरी वह रोशनी हो
जो घर के हर अँधेरे को
छूते ही उजाला कर देती है। 
 
तुम्हारी हँसी में
सरगम की पहली धुन बसती है
और तुम्हारी आँखों में
आकाश का सबसे भरोसेमंद नीला रंग। 
 
तुम दौड़ते हो
तो हवा में नई आशाएँ भर जाती हैं, 
तुम गिरते हो
तो दुनिया को गिरने से बचाने का
पहला साहस मिलता है। 
 
तुम्हारी हथेलियाँ
छोटी सही
पर भविष्य का सबसे बड़ा घर
इन्हीं में बसता है। 
 
तुम्हारे सपने
किसी पाठ्यपुस्तक का अध्याय नहीं, 
जीवन के लिए
नई कविता का मंत्र हैं। 
 
ईश्वर ने जब मनुष्य को
सबसे सुंदर उपहार देना चाहा, 
तो उसने सिर्फ़ इतना कहा कि
बच्चों को जन्म लेने दो
यही दुनिया को बचाएँगे। 
 
तुम्हारी मासूमियत
हमारी थकी हुई आत्मा के लिए
एक मधुर विश्राम है, 
तुम्हारी बातें
दिन की थकान पर रखी
एक मुलायम रजाई हैं। 
 
आज बाल दिवस पर
बस इतना कहना है
तुम हँसते रहो
क्योंकि तुम्हारी हँसी में
हम सबका जीवन छिपा है। 
 
तुम खिलते रहो
क्योंकि तुम्हारे खिलने से ही
हमारा कल फलता है। 
 
और हम बड़े
अपने भीतर बस यह संकल्प रखें
कि तुम्हारी उजली आँखों से
कभी भी
सपनों का सूरज ढलने न पाए। 
 
बाल दिवस की कोमल, 
स्नेहभरी शुभकामनाएँ
प्रत्येक नन्हे प्रकाश को। 

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