गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2

15-06-2022

गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

(श्रीमद गीता के श्लोक 11 से 20 तक का दोहानुवाद) 
 
मैं ही बल बलवान का, काम मोह प्रतिकूल। 
सब भूतों का धर्म मैं, कर्म शास्त्र आमूल। 11
 
सत गुण का सद्भाव मैं, सत रज तम अनुकूल। 
तीनों गुण मुझ से बने, मैं उनसे निर्मूल। 12
 
सत रज तम से है भरा, यह सारा संसार। 
जीव सदा मोहित रहे, मैं हूँ रहित विकार। 13
 
तीन गुणी माया सदा, दुष्कर अटल अकार। 
जो मुझको भजते सदा, होते भव से पार। 14
 
माया हरती ज्ञान को, करे असुर आचार। 
मूढ़ मनुज भूलें मुझे, करें दोष व्यवहार। 15
 
चार चरण के भक्त जो, मुझको भजते नित्य। 
अर्थ, आर्त जिज्ञासु जन, ज्ञान संग पांडित्य। 16
 
ज्ञानी अति उत्तम सदा, मुझ में रहें अनन्य। 
अतिशय प्रिय मुझको लगे, तत्वज्ञान पर्जन्य। 17
 
सभी भक्त मुझको सुप्रिय, पर ज्ञानी अति श्रेष्ठ। 
मुझमें ही रमता सदा, ज्ञानी मुझको प्रेष्ठ। 18
 
कई जन्मों के अंत में, तत्वज्ञान हो प्राप्त। 
वह नर अति दुर्लभ रहे, जो मुझ मैं हो व्याप्त। 19
 
ज्ञान नष्ट करते सदा, मदमत भोग विलास। 
भोग विवश पूजें सदा, देवों का अधिवास। 20

— क्रमशः

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