पतंग

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मुझे पतंग उड़ाना है।
आसमान तक जाना है।
 
रंग बिरंगी कितनी प्यारी।
आसमान में उड़ती न्यारी।
 
लहराती बलखाती झूमे।
नीचे आये ऊपर घूमें।
 
कितनी लम्बी इनकी पूंछें।
आसमान की जैसे मूंछें।
 
गोता खाकर नीचे आती।
फिर लहराकर ऊपर जाती।
 
नीचे गिरना ऊपर चढ़ना।
आगे बस आगे ही बढ़ना।
 
यह पतंग सिखाती है।
मेरे मन को भाती है।

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