दूसरी माँ

15-05-2021

दूसरी माँ

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"मोनिका ज़िंदगी की जंग लड़ रही है सुनीता। डॉक्टर ने कहा है उसे ओ पॉज़िटिव ब्लड प्लाज़्मा चाहिए, मैंने बहुत कोशिश की लेकिन प्लाज़्मा देने को कोई तैयार नहीं है। मेरा ब्लड प्लाज़्मा उसे नहीं लग रहा है वर्ना मैं अपना सारा ख़ून उसे देकर बचा लेता," अशोक रोते हुए बोला।

मोनिका अशोक की पहली पत्नी की बेटी थी, सुनीता उसकी दूसरी माँ थी। 

"अशोक आप रोयें नहीं मोनिका मेरी भी बेटी है मेरा ब्लड ग्रुप ओ पॉज़िटिव है; मैं उसे अपना प्लाज़मा दूँगी। मैंने वेक्सिनेशन करवा लिया है; ज़रूर मेरे ख़ून में एंटीबॉडी होंगी," सुनीता ने अशोक को ढाढ़स बँधाया।

"कोई ज़रूरत नहीं है; आप को शुगर है ब्लड प्रेशर रहता है," सुनीता की बेटी कामायनी उत्तेजित होकर बोली।

"पर बेटी मोनिका को ज़रूरत है वो भी तो तुम्हारी बहिन है,"अशोक ने सुबकते हुए कहा।

"वो आपकी बेटी है मेरी बहिन नहीं। मैं उसके लिए अपनी माँ की ज़िंदगी दाँव पर नहीं लगा सकती," कामायनी ने बड़े रूखे स्वर में जवाब दिया।

अशोक बेबस चुपचाप अपने कमरे में चला गया।

उसे सुनीता का चुप रहना खल गया था, "आख़िर सौतेली ही तो है।" उसका चेहरा विद्रूपता से भर गया।

शाम को अस्पताल पहुँचकर उसने डॉक्टर से मोनिका का हाल जानना चाहा।

"डॉक्टर मोनिका कैसी है?" अशोक के चेहरे पर निराशा थी।

"अब सब ठीक हो जाएगा उसे प्लाज़्मा चढ़ रहा है," डॉ. ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

"पर किसने दिया प्लाज़्मा?" अशोक ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

"उसकी माँ ने अभी वो डोनेट करके आराम कर रहीं हैं," डॉक्टर ने उस ओर इशारा किया जहाँ सुनीता आराम कर रही थी।

अशोक दौड़ता हुआ सुनीता के पास गया भावावेश में वह सुनीता से लिपट गया, "सुनीता तुम्हारा यह अहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा," अशोक ने सुबकते हुए कहा।

"क्यों आख़िर मैं भी तो उसकी माँ हूँ; दूसरी ही सही!" सुनीता के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

"मुझे माफ़ कर दो सुनीता," अशोक के चेहरे पर खेद के भाव थे।

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