फागुन ने कहा

01-02-2020

फागुन ने कहा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

फागुन ने कहा कुछ
टेसू के कान में।


शिशिर ने ओढ़ी  
बसंती रज़ाई है।
मकर के सूरज में  
ठण्ड क्यों बौराई है।
कलियाँ सब महक उठीं
लेकर अंगड़ाइयाँ।
मादल वसंत भीगीं  
प्रेम की रुबाइयाँ।


कुसुमित पलाश मन
डूबा अभिमान में।


लहरीला रेशम सा
मौसम उन्मादी।
स्मृतियों के आँगन में
मन है परिवादी।
शब्द बने शिलाखंड
भाव नीर झरना है।
मलिनाते सपनों में
रंग बसंत भरना है।


अवहेलित पुष्प मन
झुकें हैं सम्मान में।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत
कविता
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में