फागुन ने कहा कुछ
टेसू के कान में।
शिशिर ने ओढ़ी
बसंती रज़ाई है।
मकर के सूरज में
ठण्ड क्यों बौराई है।
कलियाँ सब महक उठीं
लेकर अंगड़ाइयाँ।
मादल वसंत भीगीं
प्रेम की रुबाइयाँ।
कुसुमित पलाश मन
डूबा अभिमान में।
लहरीला रेशम सा
मौसम उन्मादी।
स्मृतियों के आँगन में
मन है परिवादी।
शब्द बने शिलाखंड
भाव नीर झरना है।
मलिनाते सपनों में
रंग बसंत भरना है।
अवहेलित पुष्प मन
झुकें हैं सम्मान में।