ज्योति शिखा सी

01-05-2019

ज्योति शिखा सी

डॉ. सुशील कुमार शर्मा

ओंठ तुम्हारे क्यों काँपे हैं 
पलक आज क्यों नीची है। 

समय उड़ रहा पंछी जैसा 
हाथ नहीं क्यों आता है। 
दबे पाँव क्यों मन में मेरे 
रूप तेरा घुस जाता है। 

पाकर प्रिय स्पर्श तुम्हारा 
आँखे मैंने मींची हैं। 

ज्योति शिखा सी मन में जलती 
पल पल जीवन देती हो। 
क्षण भर को स्तब्ध चकित कर 
फिर वापिस चल देती हो। 

नेह बीज नव अंकुर फूटे 
प्रेम की कलियाँ सींची हैं। 

छंद नाद जैसा स्वर तेरा 
स्वप्नातीत पुनीत रूप है। 
प्रीत तुम्हारी निश्छल अविरल 
विभा भोर भरी धूप है। 

जैसे शिशु का दुलार हो 
यादें मन में यूँ भींची हैं।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में