टेढ़ी तापड़ी
आँगन में उगी दूब
गदबदाता बौराता
आम का विरबा
गुनगुनी धूप में
माँ का अचार डालना
पिताजी का पेपर पढ़ना
मेरी पीठ पर
तुम्हारी
वो प्यारी सी च्यूँटी।
वसंत के हस्ताक्षर सी।
शहर की नदी में कम होता पानी
बच्चों के चेहरों पर
उभरते परीक्षा के निशान
ठण्ड में जमी हुई
इच्छाओं के पिघलते सोते
मेहमान परिंदों
के कोकिल कंठ
आँगन में बोगनबेलिया
के फूलों के गुच्छे
वसंत के हस्ताक्षर से लगते हैं।
कोरोना के डर को
पीछे छोड़ते ख़ुश चेहरे
उड़ती तितलियाँ
गुनगुनाते भौंरे
टेसू, पलाश
वासंती फूलों से लदे पेड़
मलयज समीर
ऋतु पर वसंत ने कर दिए हैं
अपने हस्ताक्षर।
छंदों में लिपटी
वासंती लय
टूटते संयम अनुबंध
महुए की महकती डाली
मन्मथ मदन्त मन
कोंपलों सी फूटती आशाएँ
प्रौढ़ होते तन की
तरुण कामनाएँ
बन जातीं हैं वसंत के हस्ताक्षर।
सरसों के फूलों सी
अनगिनित कामनाएँ।
कविताओं में जब
उतरने लगती है
तुम्हारी कमनीय देहयष्टि
तब छंदों में होते हैं
वसंत के हस्ताक्षर।