पुण्य सलिला माँ नर्मदे

15-02-2021

पुण्य सलिला माँ नर्मदे

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)


(रेवार्चन )
(14, 12 मात्राएँ, सम चरण तुकांत)

 

माँ नर्मदे पुण्य सलिला, आत्म रूप विधान हो।
नादमय ओंकारमय, स्वस्तिमय संधान हो।
 
शिव स्वेद से उत्पन्न तुम, पुण्य धन्या शिव सुता।
अमरकंटक गोमुखी तुम, धन्य धारा मृदुलता।
 
सतपुड़ा की मेखला में, बहे जीवन दायनी।
हे रूद्रांगी सम्भूता, योगिनी मन गामिनी।
 
फेनिल अमृतमयी धारा, सर्व शोक विनाशनी।
पुष्परेखा तमस हरणी, मातु मोक्ष प्रकाशनी।
 
हे नर्मदा हे त्रिकूटा, रेवा विपापा मोक्षणी।
आशुतोषी माँ नर्मदा, कल्प सुपोषित तीक्ष्णी।
 
नीलांबरा रत्नाकरी, मनप्रभा द्रुत गामिनी
सर्वा पाप विनिर्मुक्ता, नीलमणि द्युति दामिनी।
 
धन्यधारा माँ नर्मदे, जगत का कल्याण हो।
नीर ले अविराम बहती, सिंधु तक निर्याण हो।
 
चरण में तेरा पड़ा मैं, माँ न मुझे विसारिये।
चरण रज तन मन लगा लूँ, माँ रेवा उबारिये।

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