छूट गए सब

05-03-2016

जो छोड़ा उसे पाने का मन है।
जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।

 

छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है।
खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।


छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा सा घर।
छोड़ा माँ बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।


छोड़े वो हमदम वो गली वो मोहल्ले।
छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।


छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे से रिश्ते।
छूट गए प्यारे से वो सारे फ़रिश्ते।


छूटी वो प्यार वाली मीठी सी होली।
छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली।


छूटा वो राम घाट वो डंडा वो गिल्ली।
छूटे वो "राजू" वो "दम्मू" वो "दुल्ली"।


छूटी वो माँ के हाथ की आँगन की रोटी।
छूटी वो बहनों की प्यार भरी चिकोटी।


छूट गई नदिया छूटे हरे भरे खेत।
ज़िंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।


छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में।
यादें शेष रह गईं सपनों के घर में।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत
कविता
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में