है उजाले का निमंत्रण...

01-10-2019

है उजाले का निमंत्रण...

डॉ. सुशील कुमार शर्मा

है उजाले का निमंत्रण क्यों तमस की बात हो 
आज तम को हम मिटाएँ फिर नवल शुरुआत हो

 

हर निशा तम को समेटे द्वार पर मेरे खड़ी
रक्त को अपना जला कर सुबह की शुरुआत हो

 

आज सूरज सुबह से ही उन सवालों में घिरा
चाँदनी अब चीखती है रौशनी की बात हो

 

है अगर विद्रोह का स्वर तो भला मैं क्या करूँ
सच कहूँगा मैं हमेशा चाहे मेरी मात हो

 

दीप हूँ लड़ता रहूँगा इन अँधेरों से सदा
हो उजाला हर नगर में चाहे कितनी रात हो

 

राह में मेरी हमेशा शूल कंटक पीर हैं
पाँव अब रुकने नहीं हैं चाहे झँझावात हो

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