ब्राह्मणत्व की ज्योति

01-05-2025

ब्राह्मणत्व की ज्योति

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

1.
ब्रह्म के पथ पर जो चलता है। 
ज्ञान दीप सा जो जलता है। 
शांत, सरल, सहिष्णु, विवेकी, 
धर्म हेतु जो हिम सा गलता है। 
 
वेद ऋचाओं का स्वर बनकर, 
ज्ञान फैलता मंत्रों को गाकर
वह ब्राह्मण है, सृष्टि का दीपक
अन्याय से लड़ता है संघर्ष चुन कर। 
 
ज्ञान देकर भी जो पीड़ा सहता है
नहीं अहंकारों में ब्राह्मण बहता है। 
सत्य-मार्ग का पथिक सनातन है
राष्ट्र समर्पित जिसका जीवन है। 
 
2.
वेदों की वीणा के झंकृत स्वर, 
यज्ञों की अग्नि में तप कर। 
श्लोकों की धारा, मंत्रों का आवहान। 
ब्रह्मस्वरूप वह ज्ञान अवगाहन। 
 
सृष्टि के सूरज की पहली किरण, 
संस्कारों की धरती पर गुणों का आवरण। 
जगत का वह प्रथम पुरोहित है, 
जिसकी वाणी में सत्य आरोहित है। 
 
वर्तमान में भी जो प्रासंगिक है। 
संस्कारों का जो आनुषंगिक है। 
मानवता का जो दीप जलाता है, 
ब्राह्मण दाधीच सा स्वयं को मिटाता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
कविता
सांस्कृतिक आलेख
नाटक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
गीत-नवगीत
कविता-मुक्तक
कहानी
सामाजिक आलेख
काव्य नाटक
लघुकथा
कविता - हाइकु
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
स्मृति लेख
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में