पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
डॉ. सुशील कुमार शर्मा(विश्व महिला दिवस पर विशेष आलेख)
हिंदी में विमर्श शब्द अँग्रेज़ी के ‘डिस्कोर्स’ का पर्याय है और ‘डिस्कोर्स’ लेटिन शब्द ‘Discursus (डिस्कर्सस) का, जिसका अर्थ है बहस, संवाद, वार्तालाप और विचारों का आदान-प्रदान।
किसी भी सभ्य समाज अथवा संस्कृति की अवस्था का सही आकलन उस समाज में स्त्रियों की स्थिति का आकलन कर के ज्ञात किया जा सकता है। विशेष रूप ये पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्रियों की स्थिति सदैव एक-सी नहीं रही। वैदिक युग में स्त्रियों को उच्च शिक्षा पाने का अधिकार था, वे याज्ञिक अनुष्ठानों में पुरुषों की भाँति सम्मिलित होती थीं। किन्तु स्मृति काल में स्त्रियों की स्थिति वैदिक युग की भाँति नहीं थी। पुत्री के रूप में तथा पत्नी के रूप में स्त्री समाज का अभिन्न भाग रही लेकिन विधवा स्त्री के प्रति समाज का दृष्टिकोण कालानुसार परिवर्तित होता गया।
जब महिलाओं ने अपनी सामाजिक भूमिका को लेकर सोचना-विचारना आरंभ किया, वहीं से स्त्री आंदोलन, स्त्री विमर्श और स्त्री अस्मिता जैसे संदर्भों पर बहस शुरू हुई।
नारीवाद की सर्वमान्य कोई परिभाषा देना मुश्किल काम है, यह सवाल है राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के सोचने के तरीक़े और उन विचारों की अभिव्यक्ति का।
स्त्री-विमर्श रूढ़ हो चुकी मान्यताओं, परंपराओं के प्रति असंतोष व उससे मुक्ति का स्वर है। पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे नैतिक मापदंडों, मूल्यों व अंतर्विरोधों को समझने व पहचाने की गहरी अंतर्दृष्टि है। विश्व चिंतन में यह एक नई बहस को जन्म देता है, पितृक प्रतिमानों व सोचने की दृष्टि पर सवालिया निशान लगाता है, आख़िर क्यों स्त्रियाँ अपने मुद्दों, अवस्थाओं, समस्याओं के बारे में नहीं सोच सकतीं? क्यों उनकी चेतना इतने लम्बे अरसे से अनुकूलित, अनुशासित व नियंत्रित की जाती रही है, क्यों वे साँचों में ढली निर्जीव मूर्तियाँ हैं?
जब भी स्त्री विमर्श की बात होती है तो उसके केंद्र में आज भी मध्यवर्गीय स्त्री का ज़िक्र होता है। इसकी एक बड़ी वजह साहित्यकारों और विमर्शकारों का ख़ुद मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ होना है।
भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति अंतर्विरोधों से भरी हुई है। परंपरा से नारी को शक्ति का रूप माना गया है, पर आम बोलचाल में उसे अबला कहा जाता है। मध्यकालीन भक्त कवियों के यहाँ भी स्त्री को लेकर अंतर्विरोधी उक्तियाँ विद्यमान हैं। आज भी हमारे समाज और साहित्य में स्त्री के प्रति कमोबेश यही अंतर्विरोधी रवैया मौजूद है।
भारत के बहुस्तरीय सामाजिक ढाँचे में स्त्री का संघर्ष सिर्फ देह की स्वतंत्रता या लिंग की लड़ाई तक सीमित नहीं है| यहाँ स्त्री को कई मोर्चे पर एक साथ लड़ना है और यौनिक स्वतंत्रता इस लड़ाई का अनिवार्य हिस्सा है।
भावना मासीवाल का मानना है कि जैविक संरचना के आधार पर लैंगिक भेद को सही मानने और ग़लत मानने का भी मूल वर्गीय आधार से ही नाभिनाल सम्बद्ध है।
जेंडर सामाजिक-सांस्कृतिक रूप में स्त्री-पुरुष को दी गई परिभाषा है, जिसके माध्यम से समाज उन्हें स्त्री और पुरुष दोनों की सामाजिक भूमिका में विभाजित करता है। यह समाज की सच्चाई को मापने का एक विश्लेषणात्मक औज़ार है। मैत्रयी कृष्णराज लिखती हैं समाज में जितनी भी आर्थिक और राजनैतिक समस्याएँ हैं उनका संबंध जेंडर से है। जेंडर लिंग आधारित श्रम का विभाजन है जिसे पितृसत्ता ने सामाजिक अनुशासनों के द्वारा तय किया गया।
जिस तरह भाषा में शब्दों के वर्गीकरण के लिए उनके सामाजिक व्यवहार को आधार बनाया गया और उन्हें स्त्रीलिंग, पुल्लिंग व न्यूट्रल रूप में विभाजित किया गया उसी प्रकार सामाजिक संरचना में ‘सेक्स’ को सामाजिक प्रकिया के तहत स्त्री और पुरुष की निर्धारित भूमिकाओं में ढाला गया। स्त्री और पुरुष दोनों ही जैविक संरचना हैं यह सत्य है इन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन इनकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक भूमिका का निर्धारण जब किया जाता है तो इनके अपने स्वतंत्र अस्तित्व पर प्रश्न अंकित हो जाता है, जिसका जवाब जेंडर देता है। ‘जेंडर अस्मिता के पहचान का सबसे मूक घटक है जो हमें स्त्री व पुरुष की निर्धारित सीमा को परिभाषित करने और दुनिया को देखने के नज़रिए की नाटकीय भूमिका को बताता है’। जैविक संरचना के आधार पर लैंगिक भेद को सही मानने और ग़लत मानने का भी मूल वर्गीय आधार से ही नाभिनाल सम्बद्ध है। यह केवल लिंगों के बीच के अंतर को नहीं बताता वरन् सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक स्तर पर सत्ता से इसके संबंध को भी परिभाषित करता है।
स्त्री मुक्ति का अर्थ पुरुष हो जाना नहीं है। स्त्री की अपनी प्राकृतिक विशेषताएँ हैं, उनके साथ ही समाज द्वारा बनाये गये स्त्रीत्व के बंधनों से मुक्ति के साथ, मनुष्यत्व की दिशा में क़दम बढाना, सही अर्थों में स्वतंत्रता है। स्त्री को अपनी धारणाओं को बदलते हुए, जो भी घटित हुआ, उसे नियति मानने की मानसिकता से उबरने की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही पुरुष वर्ग को ही दोषी मानकर कठघरे में खड़े करने वाली मनोवृत्ति बदलनी होगी।
आधुनिक साहित्य में स्त्री विमर्श सर्वाधिक चर्चित विषय रहा है। सीमोन द बोउवार की ‘द सेकण्ड सेक्स’ का हिन्दी अनुवाद कर प्रभा खेतान ने स्त्री विमर्श की नींव तैयार की और इससे पहले सीमन्तनी उपदेश ने इसका आधार बनाया और इन्हीं से प्रेरित होकर आधुनिक लेखिकाएँ स्त्री के प्रति समाज की मानसिकता व रूढ़ियों पर आधारित पारिवारिक बंधनों से मुक्ति की आकांक्षा में प्रयत्नशील नज़र आती हैं।
हिंदी साहित्य में भी स्त्री विमर्श कई धाराओं में विकसित हुआ और उसका मूल कारण लेखिकाओं का अपना अनुभव जगत और अपनी अलग-अलग सामाजिक स्थिति है। जिस ‘मर्दवाद’ के ख़िलाफ़ स्त्री विमर्श खड़ा हुआ है उसकी प्रतिक्रिया में ‘स्त्रीवाद’ का वह रूप भी आता है जहाँ वह मर्दवादी अवधारणा पर ही खड़ा दिखाई देता है लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया पश्चिम के स्त्री विमर्श का भी हिस्सा रही है।
मध्यवर्गीय स्त्री का पूरा संघर्ष दैहिक स्वतंत्रता से लेकर आर्थिक स्वतंत्रता तक सिमटा हुआ है। पुरुष के लिए नारीत्व अनुमान है और नारी के लिए अनुभव, अतः अपने जीवन का जैसा सजीव चित्र वह हमें दे सकेंगी, वैसा पुरुष बहुत साधना के उपरान्त भी शायद ही दे सके। फिर भी नारी विमर्श पुरुष संवेदनाओं पर आधारित है।
मेरे अनुसार स्त्री स्वतंत्रता की बात सही परिप्रेक्ष्य में की जानी चाहिए। निरपेक्ष स्वतंत्रता जैसी कोई चीज़ नहीं हो सकती। स्वतंत्रता का मूल अभिप्राय है ‘निर्णय की स्वतंत्रता’ और स्त्री स्वतंत्रता का रूप क्या होगा, यह स्वयं स्त्रियों को ही तय करना है, यह निर्णय कुछ ‘विशिष्ट’ महिलाओं द्वारा नहीं लिया जा सकता। हिंदी साहित्य में भी कुछ स्त्री लेखकों को स्त्री-विमर्श का नेतृत्व करने वाला समझना ऐसी ही भूल है। किसी भी लेखक की मुखरता नहीं बल्कि उसका लेखन उसकी साहित्यिक ज़िम्मेदारी का सबूत होता है। साहित्य किसी भी सैद्धांतिकी से प्रभावित हो सकता है और नया सिद्धांत भी गढ़ सकता है लेकिन साथ ही उसका एक बड़ा सामाजिक सरोकार होता है और यहीं से स्त्री-पुरुष के बदले मनुष्यता की ज़मीन तैयार होती है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अधूरा सा
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्कूल
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- पत्ते से बिछे लोग
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- रिश्ते
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
- सामाजिक आलेख
-
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- अबला निर्मला सबला
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
- गीत-नवगीत
-
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- काव्य नाटक
- दोहे
-
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
- लघुकथा
-
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
- कविता - हाइकु
- नाटक
- कविता-मुक्तक
-
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- होली पर कुण्डलिया
- यात्रा वृत्तांत
- हाइबुन
- पुस्तक समीक्षा
- चिन्तन
- कविता - क्षणिका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीतिका
- बाल साहित्य कविता
- अनूदित कविता
- साहित्यिक आलेख
-
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
- किशोर साहित्य कविता
- कहानी
- एकांकी
- स्मृति लेख
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- ग़ज़ल
- बाल साहित्य लघुकथा
- व्यक्ति चित्र
- सिनेमा और साहित्य
- किशोर साहित्य नाटक
- ललित निबन्ध
- विडियो
- ऑडियो
-