लापता बक्सा

01-08-2023

लापता बक्सा

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

जहाँ थोड़ा भी माँगना मुनासिब नहीं; घनघोर बारिश के बाद!

रगड़ू का फ़ुटपाथ अलोप हो गया। अब मकान का क़िस्सा नहीं है ये; यह बस एक फ़ुटपाथ ही तो था। सड़क गई, फ़ुटपाथ कैसे बचता? सरकार को दुहाई भी ना लगा पाएँगे। जब होगा तब होगा। 

वहीं बीड़ी सिगरेट आदि एक लकड़ी के बक्से में रख कर बेचता। रात को वही बक्सा सिरहाना बन जाता। 

बारिश में थोड़ी दिक़्क़त हो जाती, रैन-बसेरे में रह कर रात गुज़ारनी। असल में अपरिग्रह का पालन तो रगड़ू कर रहा था। योगी लोग बड़े मकानों में डेरा जमाए बैठे हैं। एयरकंडीशन्ड कृत्रिम गुफाएँ निर्मित करवा कर वहाँ परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के अनुष्ठान करवाए जाते हैं। पर यह असंभव है ‘अनन्त’अंत वाली चीज़ों से कैसे प्रसन्न होगा। 

वर्षों से फ़ुटपाथ पे रहते उस जगह से लगाव सा हो गया था। 

अब बारिश भी साँस लेने का नाम नहीं ले रही थी। रोटी, पानी, शौच सबकी दिक़्क़त हो गई। कुछ सरकार की तरफ़ से आने का ऐलान होता पर यहाँ आते-आते ख़त्म हो जाता। 

ज़्यादा खाने से फिर निकालने की व्यवस्था भी तो करनी पड़ेगी। चारों तरफ़ पानी है। परन्तु पानी पीने के लाले पड़ गए। 

रगड़ू तीन दिन से भूखा प्यासा, पानी से तर-बतर, छज्जे की ओट में खड़ा रहा घुटनों तक पानी में। हल्की हवा से भी कँपकँपी छूट जाती। क्या करे? कुछ समझ नहीं आता। प्लास्टिक के लिफ़ाफ़े में बीड़ी सिगरेट आदि बेचने का सामान रख बक्सा बंद कर दिया था। पानी उसे बहा के ले गया। भावुक हुआ। पानी में आँसू क्या दिखते? चौथे दिन कुछ पानी बरसना कम हुआ। सड़कें कीचड़ और गन्दगी से सराबोर। कुछ मददगार लोग खाने के बंडल आदि बाँटने लगे। पर रगड़ू अपना बक्सा ढूँढ़ने में व्यस्त हो गया कल की चिंता में। कहीं भीख ना माँगनी पड़ जाए। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में