यही मन के भीतर सुलगता रहा है

15-05-2025

यही मन के भीतर सुलगता रहा है

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

यही मन के भीतर सुलगता रहा है, 
कि मैंने समय पर न कुछ भी कहा है। 
 
बड़ी बात थी बड़ी थी कहानी, 
पहाड़ों की ओर दरिया बहा है
 
जलाया था दिल फिर कहीं जाकर, 
किरदार अपना रोशन हुआ है। 
 
मेरी ख़ुशफ़हमी थी यह शायद, 
सारा जहाँ मेरी ओर खड़ा है। 
 
कोई फ़र्क़ नहीं दूजों के संग देख, 
फिर काहे को चेहरा उड़ा है।

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